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________________ न करता अगर कर्ता पन का जो खण्डन तो पुरुषार्थ का फिर किसे ध्यान आता ?५।। अमर हो अमर धाम में जा बिराजा 'अमर' धर्म का धन्य डङ्का बजाता ?६॥ मेरी ओर .. प्रभुजी क्या है देखो ना जरा तो मेरी ओर ? ॥ध्रु.॥ ऊजड़ मग भव - विपन भयङ्कर, चल रही आँधी घोर ____ जान दीन असहाय मुझे हा ? लूट रहे कलि चोर ॥१ भूल गया औसान सभी मैं, चले न कुछ भी गौर। नाथ तुम्हीं हो अब तो मेरे केवल रक्षा ठोर ॥२ तुम तो पावन हो परमेश्वर में पतितन सिरमोर।। दीनबन्धु ? क्यों देर करो कुछ करो स्वपद पै गौर ॥३ पुत्र दुःख में लेत पिता का, करूणा - सिन्धु हिलौर किन्तु ग्वेद क्या कारण मुझ पै बन गये कठिन कठोर ॥४ अब तो अपने तुल्य करो प्रभु, यह जन पामरढोर । ___ 'अमर' लग रही लौ तुम ही से, जैसे चन्द्रचकोर ॥५ ॥ इति.॥ NOOO Jain Education International Jain Education International For Private & Personal Use Only For P www.jainelibrary.org
SR No.001377
Book TitleBhavanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1996
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size4 MB
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