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________________ [ ६ ] प्रतिज्ञा ? प्रभो ? वीर तेरा ही सुमरण करूंगा। जगत में तेरे गीत गाता फिरूगा ॥ध्र, चलूगा सदा तेरे बतलाये पथ पर। कदम एक पल भर न पीछे धरूंगा ॥१ अटल सत्य का मर्म लोगो से कहते। किसी भी न जन से जरा भी डरूँगा ॥२ रहूंगा अटल धर्म रक्षा की खातिर । बड़े हर्ष के साथ हँस - हँस मरूँगा ॥३ तड़पता है कस्टो से सारा ही भारत । सभी द्वेष क्लेशो की पीड़ा हरूँगा ॥४ अविद्या के कारण बने नर पशु से। हृदय में 'अमर' ज्ञान बिजली भरूगा ॥५ प्रभु - भक्ति जगदीश के पद पंकजों में नित्य शीश झुकाइये आनन्द परमानन्द फिर तद्रुप होकर पाइये ॥ध्रु. संसार के सुख - भोग तूफानी समन्दर है अतः प्रभु - नाम नौका में मजे से बैठकर तर जाइये ॥१ चिरकाल से दुःख देते आये हैं प्रबल कर्मों के दल भगवद भजन तलवार से कुहराम इनमें मचाइये ॥२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001377
Book TitleBhavanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1996
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size4 MB
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