________________
प्रणिपात और • नमस्कार दार |.. पणिवाओ पंचंगो दो -जाणू कर-दुगुत्तमंगं च |
सु-महत्य- नमुळारा इग-दुग- तिग जाव अह-सयं ॥२५॥
अन्वय :- पणिवाओ पंचंगो दो -जाणू कर दुगुत्तमंगं च । इग-दुग-तिगजाव | अट्ट -सयं सु-महत्थ- नमुक्कारा ||२५||
शब्दार्थ :- पणिवाओ = प्रणिपात, पंचंगो =पांच अंगवाला, दो जाणू =दो ढींचण, कर -दुग = दो हाथ, उत्तमंग =उत्तमांग मस्तक, सुमहत्थ= विस्तृत अर्थ वाला, इग दुगतिग = एक, दो, तीन, जाव= जहाँतक, अहसयं-एक सो आठ ॥२५॥
गाथार्थ :- प्रणिपात पांच अंगवाला है। दो ढीचंण , दो हाथ , और मस्तक, एक, दो, तीन लेकर एक सौ आठ तक विस्तृत अर्थवाला नमस्कार कहना।
विशेषार्थ :- उपरोक्त पांच अंगोदारा किये हुए प्रणिपात में,पांचो ही अंग भूमिको स्पर्श करना चाहिये । ये इच्छामिखमासमणो सूत्र बोलते समय किया जाता है। _ १ से १०८ तक के नमस्कार रूप श्लोक जिसमें वीतराग प्रभु के गुणों की प्रशंसा हो | वैसे गंभीर और प्रशस्त अर्थवाले पूर्वके श्री सिद्धसेन दिवाकर विगेरे महाकविओं द्वारा रचित हो, वैसे बोलना चाहिये । लेकिन श्रृंगार रस विगेरे से गर्भित और अनुचित अर्थवाले नहीं बोलना चाहिये ।
:- १६४७ अक्षर अह-सहि अहवीसा नव -नउय-सयं च दु-सय सग नऊआ | दो-गुण-तीस दु-सहा-दुसोल-अह-नउअ-सय दुवन-सयं ॥२६॥ इय नवकार-खमासमण-इरिय-सत्ययाइ-दण्डे सु । पणिहाणेसु अ अदुरुत्त-वन सोल-सय सीयाला ॥२७॥
शब्दार्थ :-अडसहि =अइसठ, अहवीसा=अट्ठावीस, नव नउय सयं= एकसो | निन्यानवे, दु-सय -सग-नउआ दोसो सित्तानवे, दो-गुण-तीस-दोसो उगणतीस, दुसहा= दोसो साठ, दु सोल-दोसो सोलह, अडीनउअ सयं =एक सौ इकराणु, दुवन्नसयं-एकसो बावन, इय-इस प्रकार,नवकार खमासमण, और इरियावहिया सूत्र,
(27