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अरिहंत चेहआणं ये आदान नाम है । लोगस्स में वर्तमान अवसर्पिणी काल के २४ तीर्थंकरों के नाम की स्तवना की गयी है, अतः इसका गौण नाम “नामस्तव" है और लोगस्स ये आदान नाम है । पुक्खरवरदी श्रुत और सिद्धान्त की स्तुति रुप होने से इसका गौण नाम "श्रुतस्तव” है । और पुक्खरवरदी ये आदान नाम है । सिद्धाणं बुद्धाणं सिद्धभगवान की स्तुति रुप होने से इसका गौण नाम “सिद्धस्तव” है , और आदान नाम सिद्धाणं या सिद्धाणं बुद्धाणं कहलाता है । इस प्रकार ये पांच सूत्र चैत्य वंदन में मुख्य होने के कारण 'दंडवत् सरल (अन्य सूत्रों की अपेक्षा से दीर्घभी) होने से दंडक कहलाते है । इन पांच दंडको में चैत्यवंदन के १२ अधिकार याने १२ विषय कहे गये हैं । उसकी विशेष स्पष्टता आगे की गाथाओं में कही जायेगी।
इति पंचदंडक बार कम्
पांच दंडक के विषयमें कहे गये १२ अधिकार के आदि पद
नमु जेय अ अरिहं लोग सव्व पुक्ख तम सिध्ध जो देवा उजि चत्ता वेयावच्चग अहिगार पढम पया ॥४२॥ - गाथार्य :-१. नमुत्थुणं २. जेय (अ) अइया सिध्धा, ३.अरिहंत चेइयाणं ४. लोगस्स उज्जोअगरे ५. सव्वलोए अरिहंत-चेइयाणं ६. पुक्खरवरदीवड्ढे ७. तमतिमिर पडलविद्धं ८. सिद्धाणं बुद्धाणं ९. जो देवाणवि देवो १०. उजित सेलसिहरे ११.चत्तारिअठ दस दो १२. वेयावच्चगराणं ये बारह अधिकार के १२ प्रथमपद है ।
॥४२॥
किस अधिकार में किसकी स्तवना है ? आगे की तीन गाथाओं में इसका वर्णन कहा जायेगा।
१. यथोक्त मुद्राभिरस्खलितं भण्यमानत्वाद् दंडाः इव दंडा : सरला इत्यर्थः (भाष्यावचूरि)