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मजे महम्मि मंसंमि, नवणीयम्मि घउत्थए।
उप्पजति अणंता, तन्वन्ना तत्थ जंतुणो |॥॥ " अर्थ:- मदिरा में, मद्यमें, मांसमें व चौथे मक्खन में इन चारो में (समान आकृति वाले) समान वर्णवाले 'अनन्त (अनेक) जंतुओं की (त्रसं जीवों की) उत्पत्ति होती है ॥२॥ इस कारण से चारो ही महाविगई अभक्ष्य है। . अवतरण :- इस गाथा में प्रत्याख्यान लेने के दो प्रकार अर्थात दो भांगे का दार दर्शाया गया है। 'मण-'वयण-'काय-"मणवय-'मणतणु-'वयतणु-"तिजोगि सग सत्त।। "कर-'कारणु मह दुतिजुड़, तिकालि सीयाल भंगसयं ॥४२॥ | शब्दार्थ:- तिजोगि-त्रिसंयोगी भंग-१, सग-सात, सत्त-सात, सगसत्त-सात । | सप्तक, कर=करना, कार=कराना, अणुमइ अनुमति, दु (जुइ)-दियोगी, तिजुइ-त्रियोगी, त्तिकालि-तीन कालके, सीयाल-सेंतालीस (४७), भंग भांगे के प्रकार, सय-सौ (१००) । __.गाथार्थ:- मन-वचन-काया-मनवचन-मनंकाया-वचन काया और। (त्रिसंयोगी याने) मन वचन काया ये सात भांगे तीन योग के हैं। उसे करना - करना - अनुमोदन करना (तथा दिसंयोगी याने) करना, कराना, कराना अनुमोदन कराना, और कराना अनुभं ,न कराना तथा (त्रिसंयोगी १ भांगा याने) करना कराना-अनुभोदन करना। ये सात भांगे त्रिकरण के होते हैं। ( साथ गुनते-सात सप्तक के ४९ भांगे ते हैं) और उसे तीन काल से गुणने पर १४७ भांगे होते हैं। ...
भावार्थ:- प्रत्याख्यान धारण करने वाले अलग अलग ४९ प्रकार से अथवा १४७ प्रकार से - अर्थात दोनो ही रीत से ले सकते हैं। उसके विकल्प तीनयोग - तीन । करण - व तीन काल की अपेक्षासे अलग अलग होते हैं। वो इस प्रकार हैं
१-२- यहाँ अनंत शब्द का अर्थ अनेक किया गया है, जिससे मांस में अनंत निगोद जीवों की तथा असंख्य त्रसजीवों की उत्पत्ति और अन्य तीन में असंख्य त्रस जीवों की उप्तत्ति होती है। या इस गाथा केवल में त्रस जीवों की उत्पत्ति के केवल रुप में कही है, इस प्रकार भी माना जा सकता है। अतः अनंत याने अनेक अर्थात असंख्य त्रस जीवों की उत्पत्ति इन चारो में होती है। ऐसा अर्थ जाणना
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