Book Title: Bhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Author(s): Amityashsuri
Publisher: Sankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth

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Page 203
________________ RAS अवतरण:- छ भक्ष्य विगई के उत्तर भेद दर्शाने के बाद इस गाथा में विगई को |स्वरुप दर्शाया गया है। कुंतिय-मच्छिय-भमर, महुँ तिहा कह पिट्ठ मज दुहा । । जल-थल-बगमंस तिहा,घयन्व मक्खण चउ अभक्खा ||४|| शब्दार्थ:- कुंतिय कौतिक,कुंती,मच्छिय = मधुमक्खि, भमर भ्रमर, कट-काष्ठ का; वनस्पतिका, पिड = पिष्ट,लोटका, मज्ज = मदिरा, दारु, जल = जलचरका, | थल-स्थलचरका, खग-पक्षीका, मंस-मांस, घयन्व-घृत की तरह, - गाथार्थ:- 'कुंतिया का, मधुमक्खि का, एव भ्रमर का शहद इस प्रकार शहद | के.तीन प्रकार हैं। तथा काष्ठ (वनस्पति) मदिरा और पिष्ट (आटे की) मदिरा, इस प्रकार मदिरा दो प्रकार की है। तथा जलचर - स्थलचर एवं खेचर जीवों का मांस, इस प्रकार मांस तीन प्रकार का है। घृत की तरह मक्खन भी चार प्रकार का है। इस प्रकार अभक्ष्य विगई १२ प्रकार की है। भावार्थ:- तीन प्रकार का शहद (मधु) गाथा में दर्शाया गया है, वह प्रसिध्ध | है। तथा दो प्रकार की मदिरा में काष्ठ की मदिरा कही है। काष्ठ अर्थात वनस्पति के अवयव स्कंध, पुष्प, तथा फल विगेरे इन अवयवों को सड़ाकर अत्यंत उष्ण कर इनका सत्त्व ॥२॥ तथा जो साधु विगई का त्याग करके स्निग्ध और मधुर रसवाले उत्कृष्ट द्रव्य (=नीवियाते विगेरे) का भक्षण करता है तो उस तप का कर्म निर्जरा रुपीफल अति अल्प समझना ॥३॥ संयम धर्म में मंद ऐसे बहुत से साधु दिखाई देते हैं, कि जिन्होने (आहारादि संबंधि) जो प्रत्याख्यान किया है, उस प्रत्याख्यान में कारण से ग्रहण करने योग्य वस्तुओं को विना कारण से परिभोग करते हैं । || ४ | तिल के मोदक, तिलकुट्टी, वरसोले, श्रीफल (कोपरे) के टुकड़े विगेरे, अधिक घोल, क्षीर, घृतपूप (पूरीयाँ) और सब्जि विगेरे (इन नीवियाते उत्कृष्ट द्रव्यों) को कितनेका साधु विना कारण से खाते है ।।५।। अतः यथोक्त विधिमार्ग के अनुसार चलने वाले और आगम की आज्ञा अनुसार आचरण करने वाले तथा जरा जन्म और मृत्यु से भयंकर ऐसे इस भवसमुद्र से उद्वेग पाये हुए चितवाले मुनिओ के लिए (असाधुओं का आचरण) प्रमाण नहीं है। जिस कारण से दुःखरुपी दावानल की अग्नि से तप्त ऐसे जिवों को संसार रुपी अटवी में श्री जिनेश्वरकी आज्ञा के अलावा अन्य कोई उपाय (प्रतिकार) नहीं है ।।८॥ विगई ती परिणति धर्म वाला मोह जिसे उदय में आता है। उसे मोह के उदय होने पर मनको वश में करने के लिए प्रयत्नशील मुनि भी अकार्य में प्रवृत्ति क्यों नहीं करते ? १, कुंतियां अथवा कुता वह वन में उत्पन्न होने वाले छोटे छोटे जंतु | 194

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