Book Title: Bhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Author(s): Amityashsuri
Publisher: Sankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth

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Page 202
________________ 'शब्दार्थ :- विगई =विगई को, विगई विगई (-दुर्गति अथवा असंयम), भीओ=भयभीत, विगइगयं-विकृतिगत को, निर्विकृतिको, नीवियाता को, जो-जो, उ= और (अथवा छंदपूर्ति के लिए), भुंजए भक्षण करे, खाये, विगइ-विगई, विगइसहावा-विकृति के स्वभाव वाली, विगई= विगई, विगई-दुर्गति में विगति में, बला-बतात्कार से, नेइ ले जाती है। . गाथार्थ:- विगति से (याने दुर्गति से अथवा असंयम से) भयभीत साधु विगई का और निवीयातो का (तथा उपलक्षण से संसृष्ट द्रव्य, व उत्तमद्रव्यों का) भक्षण करता है. (उस साधको) विगई तथा उपलक्षण से नीवियाते आदि तीनो ही प्रकार जे द्रव्य भी (विगई=)विकृति के (इन्द्रियों को विकार उपजाने के) स्वभाव वाले होते हैं। अतः वह (विगति स्वभाववाली) विगई विगति में (याने दुर्गति अथवा असंयम में) बलात्कार से ले जाती है। (अर्थात बिना कारण से रसना के लालच से विगई का उपयोग करने वाले साधु को भी वह बलात्कार से दुर्गति में ले जाती है, तथा संयममार्ग से भी पतित करती है) . विशेषार्थ:- दूध दही आदि विगईयाँ जहाँ तक अन्य द्रव्यों से उपहत नहीं होती है (म्हणाइ न हो) वहाँ तक वह निश्चित रुप से विकृति स्वभाव वाली होती है इतना ही नही अपितु उन विगईओ को अन्य द्रव्यो से तथा अग्नि आदि से उपहत करके उससे क्षीर, शिखंड आदि नीवियाते बनाये गये हो, तो ये नीवियाता यद्यपि विगई के त्याग वाले को कल्पते हैं, फिरभी ये उत्कृष्ट द्रव्य (=पौष्टिक और स्वादिष्ट रसवाले) है। अतः इनका उपयोग करने वाले को मनोविकार उत्पन्न होता है, और विगई के त्यागी तपस्वीओंको इन द्रव्यों के भक्षण से उत्कृष्ट निर्जरा नहीं होती है। अतः ये द्रव्य निविकृतिक होने पर भी इन उत्कृष्ट विविध प्रकार की तपश्चर्या आदि उत्तम अनुष्ठान तथा स्वाध्याय अध्ययन विगरे करने में असमर्थ बनते हों तो ऐसे मुनिओं को विगई के त्याग में नीवियाते आदि उत्कृष्ट द्रव्य गुरु की आज्ञा से लेना कल्पता है। उसमें किसी प्रकार का दोष नहीं लगता है। लेकिन पुष्कल प्रमाण में कर्म निर्जरा ही होती है। इस प्रकार से मुनि को भी बिना कारण से निवियाते का उपयोग गुरु की आज्ञा विना 'करना कल्पता नहीं है। (प्रव० सारो० वृ० भावार्थ) १. विना कारण से विगई का उपयोग नहीं करना चाहिये । इसके लिए सिध्धान्त मे इस प्रकार कहा है। कि नीवियातों का उपयोग भी कारण से ही किया जाता है, और उत्कृष्ट द्रव्य का उपयोग तो कारण विशेषसेभी करने योग्य नहीं है। ॥१॥ नीवियाते रुप बनी हुई विगई का उपयोग असाधु को युक्त है। लेकिन इन्द्रिय पर विजय प्राप्त करने वाले मुनि के लिए विगई के त्याग में विगई का त्यागवाला आहार का परिभोग युक्त नहीं है । (193)

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