________________
SADRI
... एकदा धर्मरुचि अणगार वहाँ पधारे । उपदेश श्रवण करने के लिए धम्मिलकुमार भी परिवार के साथ वहाँ गया । वंदन कर उपदेश श्रवण करने के लिए बैठा । उपदेश में गुरुभगवन्त ने उसका पूर्वभव दर्शाया । जिससे वैराग्य पाकर राज्य की बागडोर पुत्र को सोम्पकर चारित्र अंगीकार किया 5 दिर्घ कालतक चारित्रका पालनकिया । अंत में एकमासका अनशन कर काल करके बारहवें अच्युत नाम के देव लोक में देव बने । वहाँ से कालकर | महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर चारित्र ग्रहण कर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष की प्राप्ति करेंगे।
(इति धम्मिल कुमार दृष्टान्त) ३) परलोकमें शुभ फल प्राप्ति (दामनक का हष्टान्त) | राजगृहि नगरी के निवासी कुलपुत्र सुनंद को उसके मित्र जिनदास श्रावक ने
उपदेश देकर मुनि भगवन्त से मांस का भोजन नहीं करने का प्रत्याख्यान दिलवाया ! एक बार देश में अकाल पड़ा सभी मांसाहारी बने। सुनंद का परिवार क्षुधासे पिड़ाने लगा। | फिरभी वह मत्स्यादि जलचर जीवों को मारने के लिए नही जाता है। एक दिन साला के अति
आग्रहसे सुनंद सरोवर पर गया जाल देकर मछली पकडने को कहा ले किन जाल में जो मछली आती है, उसे वापस छोड़देता है । इस प्रकार उसने तीन दिन तक किया। अंत में अनशन.कर मांस के प्रत्याख्यान के कारण मृत्युको प्राप्तकर राजग ही नगरी में दामनक नाम का श्रेष्ठिपुत्र बनता है। आठ वर्ष की उम्र में ही मरकी के रोग के कारण माता-पिता स्वर्गवासी बने । तब दामन्नक इसी नगरी के सागरदत्त सेठ के यहाँ नोकरी करने लगा। एकदिन मुनिभगवन्त भिक्षार्थे वहाँ पधारे, सामुद्रिक शास्त्र के ज्ञाता एक मुनिने दूसरे मुनि से कहा ये दामन्नक सेठ के घर का मालीक बनेगा, ये बात सेठ सुनलेता है। सेठ उसे मरवाने के लिए चांडाल के यहाँ भेजता है। लेकिन यांडाल उसकी छोटी अंगुली काटकर उसे छोड़देता है । वह वहाँ से सेठ के ही गोकुलवाले गाँव मे चलाजाता है, वहाँ गोकुल के स्वामी ने उसे पुत्रवत रखा । कितनेक वर्षों के बाद सागर दत्त सेठ वहाँ आता है, दामनक को पहचान जाता है। पुन: उसे मरवाने के लिए पत्र में विष दे देना इस प्रकार लिखकर लेख के साथ उसे अपने घर भेजा । थकावट के कारण वह गांव के बाहर एक देवमंदिर में सो गया। दैवयोग से सेठ की पुत्री वहाँ दर्शन के लिए आती है, दामन्नक का रुप देखकर मोहीत हो जाती है । उसकी दृष्टि पत्र पर पड़ती है, पत्र में विष की जगह विषा सुधार दिया घरजाने पर शेठ के परिवार वालो विषा के साथ शादी करवादी ! सेठ घर आया अनर्थ हुआ जातकर पुनः मरवाने का उपाय किया, लेकिन उसमें उसका पुत्र ही मारागया । साधु का वचन असत्य नहीं होता है, ऐसा मानकर सेठ ने दामनक को घर का मालिक बनाया । राजाने भी नगर सेठ की पदवी दी।
206