Book Title: Bhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Author(s): Amityashsuri
Publisher: Sankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth

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Page 217
________________ ... विशेषार्थ:- प्रत्याख्यान का स्वरुप - विधि अनंत ज्ञानि श्री जिनेश्वरोने ही कही है, और उसका सर्वोतम फल जीवको मोक्षसुख की प्राप्ति होना है। तथा प्रत्याख्यान विधि का आचरण करके भूतकाल में अनंत जीवोंने मोक्षसुख प्राप्त किया है, वर्तमान काल में भी अनंत जीव (महाविदेह क्षेत्र में) मुक्तिसुख प्राप्त कर रहे है। और भविष्य में भी अनंत जीव मोक्ष सुख को प्राप्त करेंगे। ॥ प्रत्याख्यान धर्म का आचरण और उस विषय में लौकिक कुप्रवचनो का त्याग करनेका उपदेश । प्रभु के द्वारा प्ररुपित प्रत्याख्यान धर्म का पालन करना ही मानवभव और जैन धर्म प्राप्ति का सर्वोत्कृष्ट फल है। उसके पालन करने से ही आत्मगुणो संपूर्ण प्रगट होते है, और परमानंद की (मोक्ष की) प्राप्ति होती है। फिर भी वीर्यांतराय कर्म की प्रबलता के कारण प्रभुद्धारा प्ररुपित प्रत्याख्यान धर्म का पालन करने जैसी शक्ति न होनेसे तथा मोहनीयकर्म के अप्रत्याख्या नावरण कर्म के वजहसे ग्रहण न कर सकें, फिर भी प्रत्याख्यान धर्म मोक्षका परम अंग है, और केवल भावसे (अव्यक्त) अथवा द्रव्य के साथ भावसे (व्यक्त) भी प्रत्याख्यान धर्म जहाँ तक प्राप्त नही होता है। वहाँ तक मुक्ति नही मिल सकती इस प्रकार की सम्यक श्रद्धा अवश्य रखना चाहिये । प्रत्याख्यान के विषय में लौकिक कुप्रवचन .. प्रत्याख्यान धारक भव्य आत्माओं को, उनके भावसे पतित करने वाले लौकिक कुप्रवचनों का त्याग करना चाहिये । वो इस प्रकार हैं। कुप्रवचन १. मनसे संकल्प लेना प्रत्याख्यान ही है, हाथ जोड़कर उच्चरने से क्या विशेष है ? २. 'मरुदेवी माता ने क्या प्रत्याख्यान किया था ? फिर भावना से मुक्तिपद पाया अतः भावना उत्तम है। ३. भरत चक्रवर्ति ने छ खंड का राज्य भोगते हुए व्रत - नियम विना भावना मात्र से केवल ज्ञान प्राप्त किया। ४. श्रेणिकराजा नवकार सी जैसा प्रत्याख्यान भी नहीं करते थे फिर भी प्रभु ऊपर के प्रेममात्र से तीर्थंकर नाम कर्म का बंध किया। अतः प्रत्याख्यान में क्या विशेष है ? (208

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