Book Title: Bhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Author(s): Amityashsuri
Publisher: Sankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth

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Page 211
________________ भावार्थ:- गाथार्थ वत सुगम है। अवतरण :- इस गाथा में ६ शुध्धि का अर्थ, एवं अन्य ६ प्रकार की शुध्धि दर्शायी गयी है। इय पडियरियं आरा - हियं तु अहणा छ सुध्धि सहहणा | जाणण विणय 5 णुभासण, अणुपालण भावसुध्यिति ॥ ६ ॥ शब्दार्थ:- इय=इस प्रकार, पडियरिय आचरण कियाहुआ, प्रतिचरित, अहवा=अथवा, दूसरी तरह - गाथार्थ:- इस प्रकार पूर्वोक्त की रीतसे आचरण किया हुआ (संपूर्ण किया हुआ) प्रत्याख्यान वह आराध (आराधाहुआ) पच्च० कहलाता है, अथवा दूसरी रीत से भी ६ प्रकार की शुध्धि है, वो इस प्रकार, अध्या शुध्धि - जाणशुध्धि (ज्ञान शुध्धि) - विनय शुध्धि -अनुभाषणशुध्धि - अनुपालन शुध्धि और भाव शुध्यि ये ६ शुध्धि है। ||४६ ॥ . भावार्थ:- इस प्रत्याख्यान भाष्य में प्रत्याख्यान का जिस प्रकार का विधि कहागया है, उसी के अनुसार अथवा पूर्व में कही गयी पाँच शुध्धि के अनुसार जिस प्रत्याख्यान का आचरण किया हो अर्थात संपूर्ण किया हो उसे आराधित प्रत्या० कहा जाता है। तथा अन्य तरीके से भी ६ प्रकार की शुध्धि दर्शायी गयी है, उसका भावार्थ इस प्रकार . १.अध्याशुध्यि:- सिध्धान्त में साधु अथवा श्रावक संबंधि प्रत्याख्यान जिस रीति से जिस अवस्था में और जिस समय करने के लिए कहा है, उसी तरह, उसी अवस्था में और उसी काल मे ही प्रत्याख्यान करना उचित है ऐसी श्रध्धा रखना उसे श्रध्धाशुध्धि कहते हैं। . .. ज्ञानशुध्यि :- अमुक प्रत्याख्यान अमुक अवस्थामें , अमुक काल में अमुक | रीत से करना उचित है, और अन्य रीत से करना अनुचित है, इस प्रकार का ज्ञान हो उसे ज्ञानशुध्धि कहते हैं। १. प्रत्याख्यान का समय पूर्ण होने के उपरांत भी कुछ अधिक काल बीतजाने के बाद भोजन करना उसे । ।... २.भोजन के समय मेरे अमुक प्रत्या० था उस का काल पूर्ण हुआ अतः मै भोजन करुंगा' इस प्रकार बोलने से कीर्तित प्रत्या० कहलाता है (अवचूरिः) १. रीतिय याने मुनिके पंचमहाव्रतरुप मूलगुण प्रत्याख्यान और पिंडविशुध्धि आदि उत्तरगुण प्रत्याख्यान और श्रावक के पाँच अणुव्रतरुप मूलगुण प्रत्याख्यान और दिशिपरिमाण । आदि उत्तरगुण प्रत्याख्यान और उन सभी का उच्चारविधि समजना । (202)

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