Book Title: Bhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Author(s): Amityashsuri
Publisher: Sankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth

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Page 210
________________ फासिय पालिय सोहिय तीरिय किहिय आराहिय छ शुध्धं । पच्चक्खाणं फासिय, विहिणोचियकालि जं पतं ॥४॥ ___ शब्दार्थ:- फासिय स्पर्शित, पालिय=पालित, सोहिय=शोधित, तीरिय-तीरित, किट्टिय कीर्तित, आराहिय आराधित, विहिणा=विधि से, उचियकालि=उचितकाल में, पत्त-प्राप्त हुआ, लिया, गाथार्थ:- स्पर्शित - पालित - शोधित - तीरित - कीर्तित और आराधित (ये छ प्रकार की) शुध्धि है। विधि पूर्वक उचित समय में (सूर्योदय से पूर्व) यदि प्रत्याख्यान किया हो (लिया हो वह स्पर्शित प्रत्याख्यान कहलाता है। भावार्थ:- प्रत्याख्यान के स्वरुप को समजने वाले साधु अथवा श्रावक सूर्योदय से पूर्व ही स्वयं या चैत्य के समक्ष अथवा स्थापनाजी के सम्मुख या गुरु के समक्ष प्रत्याख्यान उच्चरने के बाद प्रत्याख्यान की अवधि समाप्त होने से पूर्व या पश्चात गुरु को वंदन कर गुरुसे राग-द्वेष और नियाणे के भाव से रहित बन प्रत्याख्यान करना चाहिये । उस समय गुरु के साथ स्वयं को भी मंद स्वर से प्रत्याख्यान के आलापक के अक्षर का उच्चार करना चाहिये । इस प्रकार लिया हुआ प्रत्याख्यान स्पर्शित प्रत्याख्यान कहलाता है। अवतरण:- प्रथम शुध्धि का अर्थ कहने के बाद इस गाथा में २-३-४ व ५ वीं शुद्धि का अर्थ कहा जारहा है। पालिय पुण पुण सरियं, सोहिय गुरुदत सेस भोयणओ । तीरिय समहिय काला, किट्टिय भोयणसमयसरणा ॥४॥ शब्दार्थ:- पुणपुण वारंवार, सरियं-स्मरण किया हो, समहिय-कुछ आधिक, काला=(प्रत्या० के) काल से, सरणा-स्मरण से, याद करने से. समहिय-कुछ अधिक, गाथार्थ:- किये हुए प्रत्याख्यान का वारंवार स्मरण किया हो तो वह पालित प्रत्या० कहलाता है। तथा गुरु को देने के बाद शेष बचा हुए भोजन करने से शोधित अथवा शोभित (शुद्ध किया या सुशोभित किया) प्रत्या० कहलाता है। तथा (प्रत्या० का जो काल दर्शाया है उस काल से भी) अधिक काल करने से (प्रत्या० देरी से पारने से ) तीरित' (तीर्यु) प्रत्या० कहलाता है। किये हुए प्रत्याख्यान को भोजन के समय स्मरण करने से कीर्तित (कीयु) प्रत्याख्यान कहजाता है ॥४५॥ -201

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