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तथा ये आगार एकाशन - एकलठाणा - आयंबिल नीवि उपवास छह और अहम तक के प्रत्याख्यान में होता है । इसके उपरान्त वाले दशभक्तादि (चार उपवास आदि) प्रत्याख्यानों से नहीं होता है । तथा इस आगार के विषय की अन्य जानकारी सिद्धान्त के दारा जानने योग्य है।
११. चोलपटागारेणंः-वस्त्र पहनने पर भी अविकारी रहनेवाले जितेन्द्रिय | मुनिभगवन्त कुछेक प्रसंगों पर (कटिवस्त्र विगेरे का) वस्त्र त्याग का अभिग्रह करते है ।
ऐसे त्यागी जितेन्द्रियमुनि वस्त्र रहित बन बैठे हों और उस समय कोई गृहस्थ आजावे तो | खड़े होकर चोलपट्टा धारण करे तो भी जितेन्द्रिय मुनि वस्त्र के अभिग्रह प्रत्याख्यान का भंग
नहीं होता है । इसी कारण से चोलपट्टा गारेणं आगार रखागया है । (चोल = पुरुषचिन्ह उसे ढकने वाला पट्ट = वस्त्र , चोलपट्ट कहलाता है ।) ये आगार मुनि को ही होता है = गृहस्थ को नहीं । तथा इस प्रावरण प्रत्याख्यान में अन्न सह०-चोलo-मह०-सव्व०- ये पाँच आगार पूर्व की १७ वीं गाथा में कहे गये हैं । अतः संभव है कि ये अभिग्रह एकाशनादि के विना अलग से भी ग्रहण कर सकते हैं । और प्रत्याख्यान में पांगुरणसहियं पच्चक्खामि अन्नत्थणाभोगेणं इत्यादि आलापक उच्चारे जाते हैं । अतः साध्वी को ये आगार नहीं होता है। अवतरणः-इस गाथा में १३-१४-१५ व १६ इन चार आगारों का अर्थ दर्शाया गया है।
खरडिय लूहिय डोवा-इ लेव संसह हुच्च मंडाई ।
उक्खिवत्त पिडं विगई -ण मक्खियं अंगुलीहि मणा ॥२७॥ 1. यह आगार श्रावक को एकाशनादि पच्चक्खाण में उच्चराते है। पच्चक्खाण पाठ खंडित न हो इस लिए है। लेकिन श्रावक को भी होता है, ऐसे कारण से नहीं (धर्म सं. वृति।)
१. प्रश्न : - ये आगार वर्तमान काल में उच्चरने में क्यों नही आता है ?
उत्तर :- वर्तमान काल में वस्त्र प्रत्याख्यान का अभाव है। और प्राचीन काल में कुछेक जितेन्द्रमुनि को ही ये आगार उच्चरवाया जाता था । अतः ये आगार सदैव के लिए संबंध वाला नहीं है, ऐसा लगता है, तथा साध्वी सदैव वस्त्रधारी ही होती है । अतः साध्वी को ये आगार नही होता है । ) मुनि को ही होता है ।
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