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गाथार्थ :- तिलकुट्टि निर्भंजन पक्वतेल पक्वौषधितरित और तेल का मेल, ये तेल के पाँच नीवियाते हैं । तथा साकर गुडपानी, पक्वगुड, शक्कर और आधा उकालाहुआ गन्ने का रस पाँच गुड के नीवियाते हैं | || ३४ ॥
भावार्थ :- यहाँ पर तेल के नीवियाते में तिलकुट्टि और घृत के नीवियाते में विस्पंदन- इन दो नामों के अलावा शेष ४ नाम दोनो में समान हैं। फिरभी यहाँ तेल कि पाँच नीवियाते के अर्थ कहे जा रहे हैं वो इस प्रकार हैं ।
१. तिलकुट्ट :- तिल व गुड को ऊंखली में, (खांडणीदस्त में या मिक्सर में पिसकर ) एक रस बनाया जाता है उसे तिलकुट्टि कहतें हैं। अथवा तिलवटी ' ( तिलपपडी) कहते हैं ।
२. निर्भजन :- पकवान्न तलने बाद के बचा हुआ जला हुआ तेल उसे निर्भंजन कहते हैं ।
३. पक्वतेल :- औषधि मिश्रित कर पकाया हुआ तेल पक्वतेल कहलाता है ।
४. पक्वौषधितरित :- औषधि मिश्रित कर गर्म करने पर (उकालने पर ) ऊपर जो तरी आती है उसे पढ़वौषधि तरित तेल कहते हैं ।
५. उष्णतेल के ऊपर जो मैल आता है उसे मली अथवा किट्टी कहते हैं ।
(इति तैल के पाँच नीवियाते )
गुड के पांच नीवियाते इस प्रकार हैं . ।
१. साकर :- जो कंकड के दाने के समान होते हैं जिसे मिश्री कहते हैं, उसे सालर कहा जाता है ।
१. तिल को खांडकर पश्चात उसमें ऊपर से गुड डालने में आता है, उसे तिल की साणी कहा जाता है, तथा तिल (आखे) में गुड (कच्चा) मिलाया जाता है उसे तिलपपडी कहा जाता है। इन दोनो में कच्चा गुड आता है अतः नीवियाते में नही कल्पते हैं। लेकिन गुड की चासनी लेकर बनायी हुई तिलपापडी नीवियाते में कल्पती है। (२) खट्टे पडले खाने के लिए गुडकापानी उकालने में आता है जिसको गलमाण बोलते हैं ।
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