Book Title: Bhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Author(s): Amityashsuri
Publisher: Sankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth

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Page 197
________________ गाथार्थ : - भोजन के ऊपर दूध और दहि चार अंगुल (चढ़ा हुआ हो) वहाँ तक संसृष्ट और नरम गुड़, नरम घी और तेल एक अंगुल ऊपर चढ़ा हो वहाँ तक संसृष्ट, और ठोस गुड़ तथा मक्खन' पीलु या शीणवृक्षके महोर के समान कण-खंड वाला हो वहाँ तक संसृष्ट (हो तो नीवि में कल्पते हैं, अधिक संसृष्ट् होने पर नही कल्पते हैं ।) भावार्थ:- यदि गृहस्थ अपने लिये चावल को दूध या दहि से संसृष्ट याने चावल के ऊपर चार अंगुल प्रमाण दूध, या दहि चढ़े इस प्रकार दूध या दहि डाल के चावल विगेरे को मिश्रित करके रखे तो वह दूध या दहि संसृष्ट द्रव्य कहलाता है । और वह मुनि को नीवि तथा विगई के प्रत्याख्यान में कल्पता है। लेकिन चार अंगुल से किंचित भी अधिक चढ़ा हो तो विगई में कल्पता है। नीवि में नही कल्पता है । इस प्रकार द्रव गुड़ (नरम गुड़) घी और तेल चावल विगेरे के ऊपर एक अंगुल चढ़ा हुआ होतो ये तीनो ही संसृष्ट द्रव्य नीवियाते में आते है। तथा कठोर गुड़ को चुरमा विगेरे में मिश्रित किया हो, या कठोर 'मक्खन को चावल विंगेरे में मिश्रित किया हो, और ये संपूर्णतया एक रसन हुए हों, लेकिन गुड़ और मक्खन के पीलु या शीण वृक्षके महोर के समान याने छोटे छोटे कुछेक कण चुरंगा या चावल में रह गये हो फिर भी गुड़ और मक्खन संसृष्ट द्रव्य कहलाते हैं। और ये नीवियाते गिने जाते हैं। यदि बड़े बड़े कण रह गये हों तो दोनो ही द्रव्य द्रव्य विगइ में गिणने से नीवि और विगइ के प्रत्याख्यान में नही कल्पते हैं। इस प्रकार ये ७ विगई याँ उपरोक्त विधि अनुसार संसृष्ट द्रव्य और निहत्थसंसद्रवेणं आगार में आसकती है। लेकिन मक्खन विगई तो सर्वथा अभक्ष्य होने के कारण नीवियाती बनी हो फिरभी वहोरना कल्पती नही है । अवतरण :- दूध विगेरे द्रव्य विकृत स्वभाव वाले हैं। फिरभी निर्विकृत स्वभाव वा बनते है । तथा अन्य आचार्यों के अभिप्राय से उत्कृष्ट द्रव्यरुप नीवियाता किस प्रकार बनता है? जिसे इस गाथा में दर्शाया गया है। १. यहाँ श्री ज्ञान विमलसूरि कृत बालावबोध में मक्खणाणं पद का अर्थ मसला हुआ (गुड़) किया है। तथा उसी पाठ की अवचूरि में तो पिंडगुड़ प्रक्षणयो: इस पद का द्विवचन अर्थ होने से पिंडगुड़ और मक्खन ऐसा अर्थ लगता है । 188

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