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भावार्थ :- कड़ाई अथवा तवी में तलकर बन सके वैसे भोजन को यहाँ पक्कवान्न तरीके गिनना लेकिन लोक प्रसिद्ध खाजे, तारफेणी, घेवर, इत्यादि पांच पक्वान्न हैं, इसके अलावा भी बहुत सारी वस्तुएं जैसे भुजिये, पूरी, तले हुए पापड़, पापड़ी, विगेरे पक्वान्न में आते हैं। तथा ये सारी बस्तुएँ कड़ाई में घृत-तेल विगेरे विगई अन्दर तलकर बनाई जाती है, अतः कडाई (कटाह) विगई है। घृत-तेल में तली हुई दो प्रकार की कहलाती है। ये दोनो प्रकार की कडाह विगइ, पक्वान्न विगइ स्वरुप है। फिर वो अविगई स्वरुप (नीवियाता खरुप) कैसे होती है? उसके पांच भेद याने पक्वान्न विगइ के पाँच नीवियाते का स्वरुपनिम्न प्रकार से है।
१.द्वितीया पूप:- तवी या कडाई का संपूर्ण आवरण करे वैसी प्रथम पूरी तलने के बाद की दूसरी, तीसरी, चौथी आदि पूरी या पूडे-याने प्रथम पूरी विगई में आती है उसके बाद की तली हुई सर्व पूरीयाँ विगई अविगई-नीवियाते में आती है, उसे द्वितीय पूय नीवियाता कहाजाता है। (पुनः कडाई में घृत या तेल पूरा हो तो पूनः प्रथम बड़ीपुरी तलनी चाहिये)
२. तत्स्नेह चतुर्थादिघाण :- प्रथम जो घृत या तेल कड़ाई में पूरा हो (बीच में घृत-तेल दूसरा नहीं पूरना) उसी घृत-तेल में छोटी पूरीओं के तीन घाण तर लेने के बाद, चोथा, पाँचवा इत्यादि सर्व घाण की पोरीया अविगई-नीवियाते में आती है, प्रथम तीन | घाण की पुरीयाँ विगई मे आती है, अतः चतुर्थादि सर्व घाण की पुरीयाँ उसे तत्स्नेह चतुर्थादिघाण नाम का दूसरा नीवियाता कहा जाता है।
३. गुडधाणी :- गुड़ व धाणी (=जुवार-बाजरी-मक्काई आदि को सेक कर बनाई जाती है) का मिश्रण उसे गुइधाणी नीवियाता कहा जाता है। यदि कच्चे गुड़ के साथ धाणी का मिश्रण किया हो तो विगइ में गिना जाता है, लेकिन गुड़ की चासनी लेकर धाणी का मिश्रण किया हो वह गुड़धाणी नीवियाता कहलाती है। (विशेषतः जुवार-बाजरी की धाणी व गुड़ के मिश्रण से लड्ड विगेरे बनाये जाते है।)
४. जल लापसी नीवियाता:- पकवान बनने के बाद बचा हुआ घी-कड़ाई | से निकाल लेने के बाद उसपर लगी चिकास को दूर करने के लिए गेहूँ का दलिया सेककरगुड़ का पानी डालकर लापसी बनाई जाती है उसे, या आटा सेककर कंसार बनाया जाता है उसे जललापसी चोथा नीवियाता कहा जाता है। या कारी कड़ाई में वर्तमान काल में या आधुनिक विधिसे बनाये जाने वाले पदार्थ सीरा, कसार, लापसी, सुखडी विगेरे-जललापसी |
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