Book Title: Bhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Author(s): Amityashsuri
Publisher: Sankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth

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Page 187
________________ "ससित्येण वा" आगार रखा गया है तथा गाथा में दर्शाये गये उत्स्वेदिम शब्द का तात्पर्य इस प्रकार है । उत्स्वेदिम जल ससित्य जल कहलाता है । याने मदिरादि बनाने के लिए -पदार्थों के , आटे का जल वह पिष्टजल, और आटे से लिप्त हाथ से बर्तन विगेरे धोये हो वैसा पिष्ट धोवण कहलाता है इन दोनो ही प्रकार के जल में पदार्थ के रजकण आते हैं, वैसा जल पीने से प्रत्याख्यान का भंग न हो, इस कारण से ससित्येण वा" आगार रखा गया है। २२. असित्येण वाः- ऊपर दर्शाये गये ससित्थ जल को कपड़े से छान कर स्थूल रजकण रहित, जिसमें दाना न हो, वही "असित्येण "जल कहलाता है । वैसा जल पीने से प्रत्याख्यान का भंग न हो, इस कारण असित्येण वा आगार रखा गया है । . (असित्थ याने सर्वथा सित्थ का अभाव नही, लेकिन अल्पसित्थ ऐसा अर्थ संभंवित लगता है) । यहाँ १६ से २२ तक के छ आगारो में वा शब्द का प्रयोग है, वह छ आगारों में प्रतिपक्षि दो दो आगारों की समानता दर्शाता है । वो इस प्रकार - जैसा कि अलेवेण वा आगार से याने लेप रहित जल से प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है । वैसे ही लेंवेण वा आगार से याने लेप वाले जल से प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है । | इसी तरह (अच्छेण वा=) निर्मल जल द्वारा प्रत्याख्यान का भंग नहीं होता है । . (बहुलेवेण वा=) बहुल जल द्वारा प्रत्याख्यान का भंग नहीं होत है। | इसी तरह (असित्येण वा=) असित्थ जल द्वारा प्रत्याख्यान का भंग नहीं होता है । (ससित्येण वा=) ससित्य जल दारा प्रत्याख्यान का भंग नहीं होता है। =इस प्रकार वा शब्द से यहाँ प्रतिपक्षी आगारों की अविशेषता दर्शायी है । इति ४ था आगार वारम् *** अवतरण:- इस गाथा में ५ वा दार, ६ भक्ष्य विगई के २१ भेद तथा ४ अभक्ष्य विगई के १२ भेद, संख्या दारा दर्शाये जा रहे हैं । पण चउ चउ चउ दु दुविह , छ भक्ख दुध्याइ विगइ इगवीसं । ति दुति चउविह अभक्खा, चउ महुमाई विगहबार ||२७|| -178

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