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स्वाद स्पष्ट अनुभव में न हो तो इस आगार में आता है और यदि स्वाद का स्पष्ट अनुभव हो रहा है, ऐसा आहार ग्रहण करने पर आयंबिल का भंग होता है । तथा श्रावक यदि अल्पमिश्रित आहार भी आयंबिल में लेता है तो प्रत्याख्यान का भंग होता है । कारण कि श्रावक को तो भोजन सामग्री स्वयं के लिए ध्यान में रखकर बनाना है, और मुनिओं को तो अपने लिए नही बनाया गया निर्दोष भोजन श्रावकों के यहाँ से भिक्षावृति से ग्रहण करना है । अत इस आगार की छूट सिर्फ श्रावकों के लिए नहीं (फिर भी श्रावक आयंबिल के पच्चक्खाण में आगार के उच्चराने का ध्येय, मात्र पच्चक्खाण का आलापक खंडित न हो बस इतना ही है ) ये अर्थ आयंबिल के लिए कहा है। और विगइ तथा नीवि के प्रत्याख्यान के अलग अर्थ आगे ३६ वी गाथा में कहा जाएगा | १५.उक्खित्त विवेगेणं :- रोटी ऊपर रखागया गूइ विगेरे पिडं विगइ को (उदिखत्त=) उठा कर (विवेग-विविक्त) याने भिन्न कर लिया हो फिर भी पिंड विगइ का किंचित् अंश रह जाता है । वैसी रोटी विगेरे खाने पर आयंबिलादि प्रत्याख्यान का भंग न हो इस कारण से उक्खित्त विवेगेणं आगार रखा गया है । ये आगार भी मुनिके लिए है, श्रावकों के लिए नहीं । यहाँ अधिक ध्यान रखना है कि सर्वथा हटा न सकें ऐसी पिंडविगइ से मिश्रित भोजन से प्रत्याख्यान का भंग होता है। १६. पहुच्चमक्खिएणं :- रोटी को नरम करने के लिए नीवि में न कल्पे वैसी घी विगेरे विगइ को अंगुलि से घिसने में या किंचित् रोटी पर लगाकर मसलने में आता है। वैसी अल्प लेपवाली रोटी विगेरे भोजन वहोरने से नीवि का प्रत्याख्यान भंग न हो, अतः ये आगार रखने में आता है। (पडुच्च-प्रतीत्य याने (सर्वथा रुक्ष ) अपेक्षा से मक्खिय भ्रक्षित
याने किंचित् विगइ से लिप्त करना ऐसा शब्दार्थ है ) ये आगार नीवि के प्रत्याख्यान में ही सिर्फ मुनिके लिए कहा जाता है । तथा सूक्ष्म धारसे घी डालकर रोटी मसली हो तो वैसे भोजन से नीवि का प्रत्याख्यान का भंग होता है ।
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अवतरण :- इस गाथा में पाणस्स (पानी) के ६ आगारों के अर्थ कहे जा रहे हैं ।
लेवाई आयामाइ इयर सोवीर-मच्छमुसिणजलं । धोयण बहुल ससित्यं, उस्सैहम इयर सित्थविणा ॥२८॥
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