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अवतरणः - इस गाथा में उपवास (आहार रहित तिविहार) के प्रत्याख्यान में कौन से पाँच उच्चार स्थान है ? उन्हें दर्शाया गया है ।
पढमंमि चउत्थाई, तेरस बीयंमि तइय पाणस्स । देसवगासं तुरिए, चरिमें जहसंभवं नेयं ॥८ ॥
शब्दार्थ:- तुरिए = चौथे स्थान में, चरिमे = अंतिम (पाँचवें स्थान में, जहा संभव = यथा संभव, जैसे घटित हों वैसे, नेयं = जाणना
गाथार्थ :- उपवास के प्रथम उच्चारस्थान में चतुर्भक्तसे लेकर चोंतीसभक्त तक का पच्चवखाण, दूसरे स्थान में ( नमुक्कारसहियं आदि) १३ पच्चक्खाण, तीसरे उच्चार स्थान में पाणस्स का, चौथे उच्चारस्थान में देसावगासिक का, और पाँचवें उच्चार स्थान में संध्या समय में यथासंभव पाणाहार का याने चउविहार का पच्चवखाण होता है।
विशेषार्थ :- चउविहार उपवास हो तब उसका पच्चवखाण उपवासका उच्चार व देशावगासिकका उच्चार, इन दो उच्चार स्थानोवाला ही होता है। और जब तिविहार उपवास हो तब पाँच उच्चार स्थान वाला पच्चवखाण होता है। वो इस प्रकार तिविहार उपवास के पच्चवखाण में प्रथम एक आलापक चउत्थभतं अथवा अभतद्वं याने 'उपवास से लेकर यावत् चउत्तीसभत्तं पर्यन्त अर्थात् १६ उपवास तक का उच्चराया जाता है। अतः वर्तमानकाल में १६ प्रकार का प्रथम उच्चार स्थान समझना ।
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१. ( दो एकासने से युक्त १ उपवास करने वाले को सूरे उग्गए चउत्थभत अभत्तद्वं का 'उच्चार और मात्र एक उपवास करने वाले ( गत रात्रि में चउविहार किया हो या न किया हो) को सूरे उग्गए अभत्तडं का उच्चार होता है । तथा छठ विगेरे के पच्चवखाण में आगे पीछे एकाशना करना आवश्यक नही है । जिससे दो एकासन रहित दो उपवास् तीन उपवास, किये हों, फिर भी उन्हे छठ अहम इत्यादि संज्ञा से ही जाना जाता है । और प्रत्याख्यान का उच्चार भी सूरे उग्गए छहभतं अहमभतं इत्यादि पदों द्वारा ही होता है (सेन प्रश्न भावार्थ )
२. प्रथम तीर्थंकर के शासन में एक साथ १२ मास के उपवास का, बावीस तीर्थंकरों के शासन में एक साथ ८ मास के, उपवास का पच्चवखांण दिया जाता था । अंतिम तीर्थंकर के शासन में आगे एक साथ में छमास का पच्चक्खाण दिया जाताथा लेकिन अंतिम तीर्थंकर के शासन के वर्तमान जीवों का संघयण बल दिनोदिन घटता जारहा है, इसी कारण वर्तमान में अधिक से अधिक १६ उपवास का पच्चवखाण एक साथ देने की आज्ञा है, इससे अधिक नही ।
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