________________
शब्दार्थ:- गाथार्थ के अनुसार सुगम है ।
गाथार्थ:-क्षपण में (उपवास में) अन्नत्थणाभोगेणं - सहसागारेणं पारिहावणियागारेणं - महत्तरागारेणं और सव्वसमाहि वत्तियागारेणं ये ५ आगार होते हैं । पानी के प्रत्याख्यान में लेवेण वा आदि ६ आगार (लेवेण वा-अलेवेण वा-अच्छेण वाबहुलेवेण वा-ससित्येण वा असित्थेणवा ये ६ आगार) तथा चरिम प्रत्याख्यान में और अंगुहसहियं आदि अभिग्रह के (संकेत विगेरे) प्रत्याख्यानों में अन्न त्थणा भोगेणं सहसागारेणं -महत्तरागारेणं और सव्वसमाहि वत्तियागारेणं ये ४ आगार होते हैं। ॥२१॥ ' भावार्थ :- चरिम प्रत्याख्यान में दिवसचरिम और भवचरिम ये दो प्रत्याख्यान ४-४ आगारवाले हैं, फिर भी भवचरिम प्रत्याख्यान यदि कोई समर्थ महात्मा महत्तरागारेणं और सव्वसमाहि वत्तिया गारेणं इन दो आगारों को भावी के लिए प्रयोजन रहित मानकर निरागार (आगाररहित) प्रत्याख्यान करते हैं तो निरागार भवचरिम में अन्नत्थणा भोगेणं और सहसागारेणं ये दोही आगार होते हैं । (धर्म सं-वृत्ति)
॥ प्रत्याख्यानों के आगारों का कोष्टक || नवकारसी
२ | अन्न० - सह० पोरिसी
६ | अन्न०-सह-पच्छन्न-दिसा०-साहु०-सव्व० सार्ध पोरिसी) पुरिमट्ट।
७ | ६ आगार उपरोक्त एवं १ महत्तरा० अवड
अन्न-सह-सागारि०-आउरण-गुरु०-पारि०बिआसना
मह० - सन्व० एकलठाणा
आउंटण विना एकाशन वत् विगइ
अन्न०-सह-लेवाo-गिहत्य-उरिखत्त०-पहुच्च०नीवि पिडविगई संबंधिः । पारिo-मह०-सव्व०नीवि द्रव विगई उपरोक्त आगार उक्खित्त विना ८ आगार विगई सबंधि आयंबिल
पडुच्च० विना विगइवत्
अन्न० सह० पारि० मह० सव्व० पाणहार
लेवे० अलेवेण०-अच्छेण०-बहुले० ससित्थे० असित्थे०|| अभिग्रह (संकेत सह) ४ | अन्न० - सह-मह०-सव्व०
-165)
एकासना
उपवास