Book Title: Bhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Author(s): Amityashsuri
Publisher: Sankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth

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Page 173
________________ अवतरणः- इस गाथा में दूसरे स्थान के प्रत्याख्यान नीवि, विगई आयंबिल के आगार दर्शाये गये हैं । अन्न सह लेवा गिह, उक्खित्त पहुच्च पारि मह सव्व । विगई निव्विगए नव, पहुच्च विणु अंबिले अह ||२०| • गाथार्थ :- अन्नत्थणा भोगेणं, 'सहसा गारेणं, लेवालेवेणं, गिहत्थसंसद्वेणं, उक्खित्तविवेगेणं, पडुच्चमक्खिएणं, पारिद्वावणियागारेणं महत्तरागारेणं और सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, ये ९ आगार विगई और नीवि के पच्चवखाण में होते हैं। और 'पहुच्चमक्खिएणं के अलावा ८ आगार आयंबिल में आते हैं | ||२०|| " भावार्थ:- विशेष यह है कि यहाँपर नीवि तथा विगइमें ९ आगार बताये हैं । और पूर्व की १७ वीं गाथा भावार्थ में कहा है कि नीवि में ९ तथा ८ आगार भी होते हैं । वहाँ पिंडविगई और द्रव विवेगइ दोनों के संबंध में ९ आगार होते हैं । और मात्र द्रवविगइ के विषय में उक्खित्त विवेगेणं के अलावा शेष ८ आगार होते हैं । याने पिंडविग के प्रत्याख्यान में आगार और द्रवविगड़ के प्रत्याख्यान में ८ आगार होते हैं । तथा जैसे नीवि में ७ और ८ आगार कहे है, वैसे छूटी विगई के पच्चवखाण में भी मात्र पिंड विगई का पच्चवखाण करे तो ७ आगार और मात्र द्रव विगई का पच्चवखाण में उक्तिविवेगेणं छोडकर शेष ८ आगार जाणना *** अवतरणः - इस गाथामें उपवास, पानी, चरिम और संकेतादि अभिग्रह इन चारों पच्चक्खाण के आगार बताये गये हैं। अन्न सह पारि मह सव्व पंचखम (व) णे छ पाणिलेवाई । चउ चरिमंगुडाई भिग्गहि, अन्न सह मह सव्व ||२१|| - १. जिन दोषों को टालने का प्रयत्न करते हैं, फिर भी टाल नही सकते, और सहसा हो, जाते हैं, ऐसे अकस्मात दोष अशक्य परिहार वाले कहे जाते हैं। इसी कारण से प्रत्येक प्रत्याख्यान में अशक्य परिहार वाले दो आगार रखने ही पड़ते हैं। तथा निरागार प्रत्याख्यानों में (आगार रहित में) भी ये दो आगार तो अवश्य होते ही हैं ।) २. आयंबिल में घी आदि स्निग्ध ( चिकटा) पदार्थ कल्पता नही और पडुच्च मक्खिएणं आगार घी वगेरे से कुछ मसली हुई रोटी आदि आहार भी छुट वाला है, इसलिए आयंविल में यह आगार होता नही है । 164

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