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.. भावार्थ :- गाथार्थवत् सुगम है । विशेष यह है कि यहाँ भाष्य में यद्या पि विगइ के अलग प्रत्याख्यान में : या ८, इस प्रकार दो तरीके से आगार कहें हैं । लेकिन २० वीं गाथा में फक्त ९ आगार ही कहे जायेंगे । अन्यग्रंथों में तो विगइ के प्रत्याख्यान में ९ या ८ दोनों प्रकार के आगार दर्शाये हैं।
तथा प्रावरण के प्रत्याख्यान में (जितेन्द्रिय मुनि - चोलपट्टा विगेरे नहीं पहेरने का अभिग्रह धारण करते हैं उसमें) अन्न० सह० चोलपट्टागारेणं मह० - सव्व० ये पांच आगार होते हैं । इस विषय में विशेष विवरण चोलपट्टा के अर्थ में दर्शाया गया है। - इस प्रकार १६ वीं व १७ वी गाथा में प्रत्येक प्रत्याख्यानों के आगार की संख्या सामान्यतः दर्शायी गयी । संक्षेप में इस प्रकार हैं। नमु०२ | पोरिसी०६ | सार्धपोरिती०६
प्रावरण -५ पुरिम०७ | अवड्ढ७ विगइ
नीवि एकाशन बिआसन
एकलठाण ७ आयंबिल उपवास पाणहार ६ चरिम ४ अभिग्रह
... अवतरणः -अब किस प्रत्याख्यान में कितने आगार होते हैं, उसे नामपूर्वक दर्शाया जारहा है । इस गाथा में प्रथम स्थान में गिने जाने वाले अध्धा प्रत्याख्यान के याने नव०। पोरिसी - सार्धपो० और पुरिम० अवड्ढ0 के प्रत्याख्यान के आगार दर्शाये गये हैं। :: अनसह दुनमुकारे, अन्न सह पच्छ दिसय साहु सव्व ।
पोरिसि छ सड्डपोरिसि, पुरिमड्ढे सत्त समहतरा ॥१८॥ . . शब्दार्थ :- गाथार्थ के अनुसार सरल है।
गाथार्थ:-नमुक्कार सहियं के पच्च० में, अन्नत्थणभोगेणं और सहसागारेणं ये दो आगार हैं, तथा अन्न थणा भोगेणं, सहसागारेणं पच्छन्न कालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणएणं, सव्वसमाहि वत्तियागारेणं, ये ६ आगार पोरिसी व सार्धपोरिसी के प्रत्याख्यान के हैं । और महत्तरा गारेणं सहित ७ आगार पुरिमार्थ के (तथ् अपार्ध =अवड्ढ के) प्रत्याख्यान में होते
१. (यहाँ अभिग्रह शब्द से ८ प्रकार के संकेत प्रत्याख्यानों में तथा द्रव्यादि । प्रकार के अभिग्रह में ४ आगार होते हैं । जिसका वर्णन २३ वीं गाथा में दर्शाया गया है।
२.८ या ९ आगारों का कारण विगइओं का स्वरुप तथा उविखत आगार का अर्थ जानने के बाद समज में आयेगा । (अर्थ आगे गाथा में दर्शाया गया है)
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