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तथा शहद - गुड़ - शक्कर - मिश्री भी स्वादिम में ली है, लेकिन तृप्ति करने वाले | पदार्थ होने के कारण दुविहार में नही कल्पते हैं। ___ अनाहारी:- निम के पेड़ के सर्व अंग, (पत्र छाल लकडी फल फुलादि) गोमूत्रादिमूत्र, करियाता, गलो, कडू , अतिविष, चीड़, - राख, - हल्दी, उपलेट,-जवुहरड़े,'बेहडा - आँवले - बबूलछाल, धमासा, - कटु, - आसंधि, - नाहि - रिंगणी - एलीओ - गुगल - बोरड़ी - कंधेरी - केरमूल - पूंआइ - मजीठ - चित्रक - कुंदरु - फटकड़ी - चिमेइ - थुवर - आकड़ा - विगैरे - अर्थात् जो वस्तु स्वाद में अनिष्ट स्वाद वाली हो - उन्हें अनाहारी समजना।
अवतरण :- अब १६वीं व १७ वी गाथामें २२ आगार का (किस प्रत्याख्यान में कितने आगार होते हैं ? उस विषय में) चौथा दार कहा जारहा है।
दो नवकारी छ पोरिसि, सग पुरिमडे इगासणे अह । .. सतेगठाणि अंबिलि, अह पण चउत्थि छप्पाणे ॥१६॥ शब्दार्थ:- गाथार्थ के अनुसार सरल हैं ।
गाथार्थ:- नवकारसी में २ आगार, पोरिसी में ६ आगार पुरिमड्ढ में ७ आगार, एकाशन में (तथा बिआसने में) ८ आगार, एकलठाणे में ७ आगार, आयंबिल में ८ आगार, चतुर्थभक्त में (उपवास में) ५ आगार और पाणस्स के प्रत्याख्याने में ६ आगार होते हैं। ॥१६॥
चउ चरिमे चडभिग्गहि. पण पावरणे नवरनिन्वीर । आगारुखित्त विवेग - मुत्तु, दवविगइ नियमिह ॥१७॥ शब्दार्थ:- गाथार्थ अनुसार सरल हैं ।
गाथार्थः- चरिम प्रत्याख्यानों में (दिवस चरिम और भव चरिम में) ४ आगार, 'अभिग्रह में ४ आगार, प्रावरण (वस्त्र के) प्रत्याख्यान में ५ आगार, और नीवि में : आगार, अथवा ८ आगार । यदि नीवि के विषय में पिडविगइ और द्रव विगइ इन दोनों का प्रत्याख्यान हो तो (s आगार) मात्र द्रव विगइ के नियम में उक्खित्त विवेगेणं इस आगार को छोड़कर शेष ८ आगार होते हैं |||१७॥ २. हरड़े बेहड़े व आँवले विमेरे कितनीक वस्तुओं को स्वादिम में भी गिनी गयी है।
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