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देववंदन विधि इरि-नमुकार-नमुत्थुण-रिहंत-थुइ-लोग-सन्व-थुइ-पुक्ख । थुइ-सिद्धा-वेया-थुइ-नमुत्यु-जावंति-थय-जयवी ॥१२॥ अन्वयः- इरि-नमुकार-नमुत्थुण-रिहंत-थुइ-लोग-सव्व -थुइ
पुक्ख। थुइ-सिद्धा-वेया-थुइ-नमुत्थु-जावंति-थय - जयवी ... गाथार्थ:- इरियावहियं - नमस्कार - नमुत्थुणं - अरिहंत चे० - स्तुति - लोगस्स सव्वलोए -स्तुति - पुक्खरवरदी - स्तुति - सिद्धाणं - वेयावच्चगराणं - स्तुति - नमुत्थुणं - जावंति चेइ० दो, स्तवन और जयवीयराय ||६२॥
विशेषार्थः- इरियावहियं याने एक खमासमण देकर, आदेश पूर्वक इरियावहियं, तस्स उत्तरी, अन्नत्य कहके एक लोगस्स का २५ श्वासोच्छ्वास प्रमाण, चंदेसु निम्मलयरा तक कायोत्सर्ग करके पारकर लोगस्स कहना, उसे इरियावहिया कहा जाता
बादमें तीन खमासमण देकर चैत्यवंदन का आदेश लेकर नमुक्कार अर्थात् जघन्य से तीन गाथावाला और उत्कृष्ट से १०८ गाथाओं वाला देशी भाषा संस्कृत या प्राकृत भाषा में रचा हुआ चैत्यवंदन बोलने में आता है । उसे तीन या एकसो आठ नमस्कार वाला चैत्यवंदन कहा जाता है । और बादमे जंकिंचि सूत्र भी कहना । वह चैत्यवंदन के अंतर्गत सर्व सामान्य चैत्यवंदना है । परंपरा से बोला जाता है । भाष्यत्रय में नहीं दर्शाया है। ___ बादमें मस्तकद्वारा तीनबार भूमि को स्पर्श करके नमुत्थुणं कहना फिर अरिहंत चेइ० अनत्य कह कर ८ उच्छवास प्रमाण एक नवकार का काउस्सग्ग करना । काउस्सग्ग पारकर अधिकृत एक चैत्य या जिन संबंधी स्तुति बोलना । समुदाय में वडील ने जिसको आदेश दिया हो, वो व्यक्ति स्तुति बोले और अन्य सभी सुनें । पुरुष द्वारा बोली गयी स्तुति चतुर्विध संघ को सुनना कल्पता है । और नारी ने बोली हुई स्तुति साध्वी व श्राविका को सुनना कल्पता है । (इस प्रकार देववंदन में भी समजना) (संधाचार गाथा ५०० वी)
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