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४). शीर्ष:- यहाँ शीर्ष मात्र कहने से भी गुरु दो बार किंचित मस्तक झुकावे, और शिष्य दो बार विशेष मस्तक झुकावे-(दो बार संफासं पद बोलते समय) अर्थात गुरु व शिष्य के दो दो शीर्ष नमन इस प्रकार ४ शीर्ष नमन- - -----
यहाँ कितनेक आचार्य दो बार के खामणा समय के दो और संफास के समय के दो इस प्रकार ४ शिर्ष नमन शिष्य के मानते है। प्रश्न:- दोअवनत भी शीर्ष नमन ही हैं, और चार शीर्ष नमन भी शीर्ष नमन है फिर इन दोनो आवश्यकोमें क्या फर्क ? उत्तर:- अवनत आवश्यक में शिष्य के किंचित मस्तक झुकाने की मुख्यता है और शीर्ष आवश्यक में मस्तक को विशेष झुकाने की महत्ता है।
यहाँ खामेमि खमासमणो देवसियं वइलमं इन पदों के उच्चार दारा शिष्य का मस्तक नमन रुप १ शीर्ष नमन शिष्य का, और अहमवि खामेमि तुम इस प्रकार बोलते हुए आचार्य का किंचित शीर्ष नमन वह दूसरा गुरु शीर्ष नमन, इसी प्रकार दूसरे वंदन के समय भी दो शीर्ष = कुल ४ शीर्ष आवश्यक समजना | कही र पर संफासं पद के उच्चार के समय शिष्य - का संपूर्ण (=गुरु के चरणो मे नमन) नमन उसे १ शीर्ष नमन, और खामेमि खमा० इत्यादि पूर्वोक्त पदोच्चार के समय भी शिष्य का दूसरा शीर्ष नमन, ये दो नमन पहले वंदन में और दूसरे दो शीर्ष नमन दूसरे वंदन के समय इस प्रकार चार शीर्ष नमन आवश्यक समजना। ३. गुप्ति:- (१) मनगुप्ति-वंदन के समय मन की एकाग्रता रुप है।
(२)वचन गुप्ति- वंदन के सूत्रों के अक्षरों का शुद्ध और अस्खलितत उच्चार रुप है। ... (2) काय गुप्ति- काया के द्वारा आवर्त विगेरे दोष रहित करने रुप है। ३) प्रवेश:- प्रथम वंदन के समय गुरु की आज्ञा लेकर 'अवग्रह में प्रवेश करना १ प्रवेश ! और अवग्रह से बाहर निकल कर पूनः आज्ञा लेकर दूसरी बार अवग्रह मे प्रवेश करना र प्रवेश ।
निष्क्रमण:- अवग्रह से बाहर निकलना उसे निष्क्रमण आवश्यक कहते है। और वो दो वंदन में (अथवा दो प्रवेश में) एक ही बार होता है। कारण कि प्रथम बार वंदन में अवग्रह में प्रवेशकर ६ आवर्त विधि करके आवस्सियाए पद बोलकर शिघ्र अवग्रह से बाहर निकलकर, शेष सूत्र पाठ बोलाजाता है। जबकि दूसरी बार वंदन के समय अवग्रह में प्रवेशकर के दूसरे ६ आवर्त करने के बाद भी अवग्रह में खड़े खड़े ही शेष सूत्र पाठ बोलाजाता है, इस प्रकार का विधि मार्ग है। जिससे प्रवेश दो बार, निष्क्रमण एक बार होता है। इसी कारण से दूसरी बार आवस्सियाए पद का उच्चार नहीं किया जाता है।
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