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_.. अभक्तार्य :- जिसमें भक्त = भोजन का अर्थ = प्रयोजन नहो उसे अभक्तार्थ याने उपवास कहते हैं । इसमें सूर्योदय से लेकर आनेवाले कल के सूर्योदय तक का (संपूर्ण रात्रि व दिन का) चारों प्रकार के आहार या जल विना तीन प्रकार के आहार का त्याग होता है। तिविहार वाले दिन में उष्ण जल ग्रहण कर सकते हैं। रात्रि को उसका भी त्याग होता है। एक उपवास में दो बार के भोजन का त्याग होता है । प्रथम दिन एकासना व पारणे के दिन एकाशना करे तो चार बार के भोजन का त्याग होता है। दो एकाशने सहित उपवास का नाम चतुर्थभक्त (= चौथभक्त) कहलाता है।
८. चरिम प्रत्यख्यानः- ये पच्चक्खाण दो प्रकार का है । चरिम = दिन के अंतिम भाग में किया जाने वाला पच्चक्खाण उसे दिवस चरिम और आयुष्य के अंतिम भागमें अर्थात् मृत्युके समय किया जाने वाला पच्चक्खाण उसे भवचरिम पच्चक्खाण कहते हैं। इसमें गृहस्थों को दुविहार, तिविहार, चौविहाररुप दिवसचरिम पच्चक्खाण सूर्यास्त से १ मुहूर्त पहले करना चाहिये और मुनि भगवन्त तो चौविहार पच्चवखाण वाले ही होते हैं। तथा एकाशनादि वाले को दिवस चरिम पच्चकखाण पाणहार रूप में होता है।
3. अभिग्रह प्रत्याख्यानः- अमुक प्रकार की हकिकत बनेगी, तब ही मैं अमुक आहार ग्रहण करूंगा उसे अभिग्रह पच्चवखाण कहा जाता है ।
ये प्रत्याख्यान ४ प्रकार का है । द्रव्य क्षेत्र काल व भाव अभिग्रह
(१) द्रव्य अभिग्रहः- द्रव्य मर्यादा का संकल्प करना, याने अमुक द्रव्यसे (चमच आदि से) आहार देंगे, तोही लूंगा या अमुक आहार ही लूंगा, इस प्रकारके संकल्परुप प्रत्याख्यान
(२) क्षेत्र अभिग्रहः- क्षेत्र मर्यादाका संकल्प करना, याने अमुक गाँवसे या घरसे | अथवा अमुक मील दूरसे आहार, लानेका निश्चय करना उसे।
१. प्रश्न:- खुल्ले मुख भोजन करने वाले श्रावक के लिए ये पच्चक्खाण युक्त है। लेकिन एकाशनादि तपवालेको एकाशनादि तप दूसरे सूर्योदय तक का होने से वह तपमें ही आ गया गिना जाता है । अतः उस के लिए दिवस चरिम प्रत्या. की क्या सार्थकता ?
उत्तर:-एकाशन तप आठ आगार वाला है, और दिवस चरिम पच्चक्खाण चार आगार वाला है। अतः आगारोंका संक्षेप यही सार्थकता है। अधिक जानकारी धर्म संग्रहवृत्ति विगेरे से जानना।
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