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(३) काल अभिग्रा:- काल मर्यादा का संकल्प करना । ये अभिग्रह तीन प्रकार का है। भिक्षा काल से पूर्व, भिक्षा काल के समय, अथवा भिक्षा काल के बाद आहार लाने का अभिग्रह ।
(७) भाव अभिग्रह:-भाव मर्यादाका संकल्प करना। याने गाते गाते, या रोते हुए, बैठे बैठे या खड़खड़े, अथवा पुरुष या स्त्री खड़े होकर आहार वहोराये तो ही आहारलेना, इत्यादि अनेक प्रकारका भाव अभिग्रह होता है। .. पूर्वोक्त अनागतादि १० प्रकारके पच्चक्खाणमेंसे ८ वाँ परिमाणकृत पच्चक्खाण व नवकारसी आदि अध्धा पच्चकखाण सिवाय 8 वाँ संकेत पच्चक्खाणकाभी इस अभिग्रह पच्चक्खाण मे (संबंधित होने से) समावेश होता है।
१०. विगह प्रत्याख्यानः- विगइ = विकृति, विकार, अर्थात् इन्द्रियके विषयको | विकृत (उत्तेजित) करनेवाले पदार्थ दूध, दहि, घी, तेल, गुड़ और पकवान्न रुप ६ प्रकार की विगइ को भक्ष्य विगई कहा जाता है। और इसी विगइ के ३० नीवियाते होते हैं, जिनका यथासंभव त्याग करना उसे नीवि प्रत्याख्यान कहा जाता है । तथा मांस, मधु, मदिरा, और | मक्खन ये चार अभक्ष्य याने महाविगइ कहलाती है। जिसका सदैव के लिए त्याग करना चाहिये। ये भी विगइ प्रत्याख्यानके अन्तर्गत है। इति १० प्रकार के अध्धाप्रत्याख्यान रुप प्रथम दार |
*** अवतरणः-इस गाथा में ४ प्रकार के उच्चार विधि रुप, दूसरा बार कहा जा रहा है।
उग्गए सरे अ नमो, पोरिसि पच्चक्ख उग्गए सरे ।
सूरे उग्गए पुरिमं, अभतडं पच्चक्खाइ ति || शब्दार्थ :- सुगम है। गाथार्थ:- भावार्थ के अनुसार।
भावार्थ :- प्रथम उच्चार विधि उग्गए सूरे नमोयाने उठगए सूरे नमुक्कार सहियं । दूसरा उच्चार विधि पोरिसि पच्चक्ख उग्गए सूरे याने पच्चक्खामि उग्गए सूरे (अथवा) (उग्गए सूरे पोरिसिअं पच्चक्खामि) ये दूसरा उच्चार विधि पोरिसि व सार्धपोरिसि के लिए। भी समझना। सिर्फ तफावत इतना है कि सार्धपोरिसि के लिए साढपोरिसि पद को बोलना।
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