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शब्दार्थः गाथार्थवत्
** गाथा मे पुरोगन्ता ये शब्द (गुरु के आगे चलने वाले शिष्य के लिए आशातना रुप समजना - इस आशय वाला होने से ) शिष्य का विशेषण होता है। और इसी तरह गाथा में कहेगये सारे ही शब्द शिष्य के विशेषण-तरीके गिनना है। पुरोगमन (गुरुं के . आगे चलना आशातना है, "इस अर्थ के आधार से) आशातना का नाम कहा गया है । " गाथार्थ के सारे ही शब्द आशातना के नाम तरीके गिने है। लेकिन शिष्य के विशेषण तरीके नही। इस प्रकार करने का कारण आशातना के नाम का ही यहाँ प्रयोजन होने से नामो की सुगमता करना मात्र है ।
१ गाथा में ययपि आसन्न शब्द है, लेकिन उसे यहाँ पृष्ठ के अर्थ के साथ जोड़ने के लिए हैं। तथा पक्षकी आशातना के समय भी उपलक्षण से प्रयोग करना है।
गाथार्थ: पुरोगमन (पुरोगन्ता) पक्षगमन-आसन्नगमन ('पृष्ठगमन) तथा पुरःस्थ (= पुरः तिष्ठन् ) पक्षस्थ (पक्षेतिष्ठन् ) पृष्ठस्थ (आसन्न - तिष्ठन) - तथा पुरो निषीदन पक्षेनिषीदन आसन्न निषीदन (पृष्ठनिषीदन) (ये नौ आशातनाएँ तीन तीन के त्रिक रुप . . ) तथा पूर्व आचमन पूर्व आलोचन - अप्रतिश्रवण, पूर्वालापन, पूर्वालोचन, पूर्वोपदर्शन पूर्व निमंत्रण, खददान- खदादन, अप्रतिश्रवण, खदं (खद्ध भाषण) तत्रगत, कि (क्या), तुं, तज्जात, (तज्जात वचन ) नोसुमन नोस्मरण कथाछद, परिषद भेद, अनुत्थित कथा,, संथारापाद घट्टनं संथारावस्थान उच्चासन और समासन आदि यह भी ये ३३ आशातनाएँ है । (३५-३६-३७)
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(१) प्रश्न :- गाथा में तो पृष्ठ शब्द का प्रयोग नहि किया गया, लेकिन आसन्न शब्द का ही प्रयोग किया है, फिर आसन्न गमन के स्थान पर पृष्ठगमन आशात्तना क्यों कही ?
उत्तर: गुरु के पीछे चलने का अधिकार तो शिष्य को है ही, लेकिन आसन्न नजदीक में चलने का अधिकार नही है । अतः पृष्द शब्द के स्थानपर आसन शब्द का प्रयोग किया है और उसे पृष्ठ शब्द से जोड़ने के लिए है। जिससे पिछे चलना आशातना नहीं है, लेकिन अति नजदीक (स्पर्शहोते हुए) चलना आशातना है। तथा ग्रंथो में पृष्ठगमन आशातना लिखी है, अतः यहाँ पर भी पृष्ठगमन आशातना दर्शायी है ।
(३) आगे की ३, पीछे की ३, बाजु की ३, (चलना बैठना और खड़ेरहने के संबंध में) ये आशातनाओं के त्रिक हैं, ३ x ३ = ९ कुल नौ आशातनाएँ हुई । अथवा चलने की ३, बैठने की ३, खड़े रहने की ३ इस प्रकार भी ९ आशातनाएँ त्रिकरूप में होती है।
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