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१. अनागार पच्चक्खाण:- आगे कहे जाने वाले आगारों (अपवादों) में से अनाभोग आगार और सहसा आगार, इन दो 'आगारों को छोड़कर शेष आगार रहित प्रत्याख्यान' करना उसे ६.सागार पच्चक्खाण:- आगे कहे जाने वाले २२ आगारों में से यथायोग्य आगारों
सहित पच्चक्खाण करना उसे ७. निरवशेष पच्चक्खाणः- चारों ही प्रकार के आहार का सर्वथा त्याग करना
उसे। (ये पच्चकखाण विशेषतः अंत समय में संलेखनादि के समय में किया जाता है) ८. परिमाण कृत पच्चक्खाण:- 'दत्तिका, कवलका', गृहों 'का-भिक्षा का और 'द्रव्य का प्रमाण करके शेष भोजन का त्याग करना उसे। 5. संकेत (सकेत) पच्चक्खाणः केत = गृह और स= सहित, याने गृहस्थों का जो पच्चक्खाण उसे संकेत पच्च० कहते हैं । अथवा मुनि को लेकर विचार करें तो केत = चिन्ह, अर्थात् चिन्ह सहित जो पच्चक्खाण उसे सकेत पच्चक्खाण - या संकेत पच्चक्खाण भी कहते हैं। ये प्रत्याख्यान साधु व श्रावक दोनों को होता है। १. कारण कि ये आगार बुद्धि से नही बनते, अपितु अकस्मात हो जाते हैं । २. ये आगार प्रथम संघयण वाले मुनि प्राणान्त कष्ट और भिक्षा का सर्वथा अभाव
जैसे प्रसंगो पर करते हैं। वर्तमान काल में प्रथम संघयण का अभाव है । अतः ये प्रत्याख्यान नहीं किया जाता है। 2. हाथ या बर्तन से जितना अन्न निरंतर एक धारा से पड़े, उतने अन्न को एक दत्ति
कहा जाता है। वैसी १-२-३ दत्ति का प्रमाण करना उसे दत्ति प्रमाण कहा जाता है। ४. मुखमें प्रवेश हो सके वैसे ३२ कवल का आहार पुरुषों के लिए और स्त्रियों के लिए २८ कवल प्रमाण आहार है। उसमें से इतने ही कवल प्रमाण आहार ग्रहण करूंगा। इस प्रकार का नियम कवल प्रमाण कहलाता है। 1. इतने ही गृहों से आहार ग्रहण करना, इस प्रकार का प्रमाण उसे ग्रह प्रमाण कहते हैं.। १. खीर, चाँवल, मूंग आदि अमुक द्रव्य आहार लेना उसे द्रव्य प्रमाण कहा जाता है।
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