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प्रश्न:- अव्याबाध, यात्रा और यापना इन तीनों में परस्पर क्या फर्क है ? .. उत्तर:- तलवार आदि के अभिघात से हुई व्याबाध अर्थात पीड़ा वह द्रव्य-व्याबाध है; . और मिथ्यात्वादि (शल्य) से होने वाली पीड़ा वह भाव व्याबाधा है। इन दोनो का अभाव उसे यहाँ अव्याबाधा समजना | तथा सुखपूर्वक संयम क्रिया का पालन हो रहा हो उसे यात्रा कहते है। याने औषध आदि से होनेवाली शरीर की समाधि द्रव्ययापना तथा इन्द्रिय और मनके उपशम होनेवालि शरीर की समाधि भावयापना है। इस प्रकार दोनो प्रकार की यापना समजना । इस भावार्थ से तीनो का स्पष्टी करण समज में आसकता है। . . : .
अवतरण:- पूर्व गाथा में कहे गये शिष्य के प्रश्न रुप छ स्थानो में गुरु के उत्तर रुप ६ वचन होते हैं। गुरु के छ वचन रुप २० वा दार इस गाथा में दर्शाया गया है।
छंबेणणुजाणामि, तहत्ति तुम्भंपि वहए एवं ।
अहमवि खामेमि तुमं, वयणाइ वंदणरिहस्स || ३४॥ - शब्दार्थ:- छंदेण=इच्छासे, अभिप्रायसे, अणुजाणामि आज्ञा देता हूँ, तहत्ति जैसा, तुब्भंपि-तुझेभी, वहए है, एवं इसीतरह, अहमवि=मै भी,खामेमि=क्षमा याचना करता है।, तुम तुझे, वयणा इं-ये (छ) वचन, वंदण-अरिहस्स= वंदन करने योग्य के (अर्थात गुरु के) -
गाथार्थ:- छंदेण-अणुजाणामि-तहत्ति-तुब्भंपि-वट्टए-एवं और अहमवि खामेमि तुम ये ६ वचन गुरु के होते हैं। ॥३४॥ . विशेषार्थ:- शिष्य अपने प्रथम वंदन स्थान में इच्छामि इत्यादि पाँच पदों द्वारा जब गुरु को वंदन करने की इच्छा व्यक्त करता है, तब वंदन करवाने के भाव वाले 'गुरु 'छंदेण' इस प्रकार बोलते हैं। यह गुरु का प्रथम वचन है। यदि किसी कारण से गुरु वंदन नहीं करवाना चाहें तो 'पडिक्खह' अथवा 'तिविहेण' शब्द बोलते हैं। उस समय शिष्य संक्षिप्त वंदन याने खमासमणा देकर या मत्थएण वंदामि कहकर चला जाता है। लेकिन वंदन किये बिना नहीं जाता है। ये शिष्टाचार है। १.छदेण=अभिप्राय से, अर्थात् मेरा भी यही अभिप्राय है ( कितुं वंदन कर ) प्रव० सा० वृत्ति । इसमें शिष्य का : "जैसा तेरा अभिप्राय” इस प्रकार का अर्थ नहीं है। लेकिन समज सकें वैसा है। २. तिविहेण ये पद आवश्यक वृत्ति के अनुसार कहा है, और उसका अर्थ "मन वचन काया द्वारा वंदन करने का निषेध है" ये अर्थ प्रव सारो० वृत्ति के अनुसार कहा है।
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