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गाथार्थ:- अनावृत (अनादर दोष) स्तब्धदोष, प्रविध्ध दोष, परिपिंडित दोष, टोलगति दोष, अंकुश दोष, कच्छपरिंगित दोष, मत्स्योदवृत्त दोष, मनःप्रदुष्ट दोष, वेदिकाबध्ध दोष, भजन्त दोष, भय दोष, गारव दोष, मित्र दोष, कारण दोष, स्तेन दोष, प्रत्यनीक दोष, रुष्ट दोष, तर्जित दोष, शह दोष, हीलित दोष, विपरिकुंचित दोष, दृष्टादृष्ट दोष, शृंग दोष, कर दोष, करमोचन दोष, आश्लिषृ दोष, अनाश्लिषृ दोष, ऊन दोष, उत्तरचुड़ दोष, मूक दोष, ढढर दोष, और चडुलिक दोष (इन बत्तीस दोषों को टालकर गुरुवंदन - द्वादशावर्त वंदन करना) || २३ ||
||२४|| || २५ ||
विशेषार्थ:
किंचित स्वरुप वर्णन |
गुरु वंदन - दादशावर्त्त वंदन करते समय टालने याग्य ३२ दोषों का
१. अनाहत (अनादर) दोष :- आदर रहित संभ्रांत चित्त से वंदन करना ।
२. स्तब्ध दोष:- मद (जातिमद विगेर मद) से ' (स्तब्ध) अभिमानी बन कर वंदन करना। ३. प्रविध्ध दोष:- वंदन को अधूरा छोडकर 'अन्यत्र चलेजाना । या अस्थान पर छोड़कर चले जाना ।
१) वायु से नही झुकने वाला अंग द्रव्यस्तब्ध और अभिमान से नही झुकना उसे भावस्तब्ध उसके
४ प्रकार
(१) द्रव्य से स्तब्ध, भावसे अस्तब्ध |
(२) भाव से स्तब्ध द्रव्य से अस्तब्ध |
(३) द्रव्य से स्तब्ध भावसे भी स्तब्ध ।
(४) द्रव्य से अस्तब्ध भाव से भी अस्तब्ध ।
इन चार में से चौथा भाग शुद्ध है, शेष तीन भागे भाव से स्तब्ध होने के कारण अशुद्ध ही है। तथा द्रव्य से स्तब्ध (प्रथम भाग ) शुद्ध और (तीसरा भाग) अशुद्ध हो सकता है।
२. भाड़ेवाला बर्तनादि सामग्री लेकर आता है, जिस स्थान की बात की हो वहाँ आकर रुक जाता है,
अन्यत्र ले जाने के लिए कहने पर वो वहीं (अस्थान पर) छोड़ कर चला जाता है। वैसे
३. प्रथम प्रवेश आदि स्बागत योग्य स्थानो को अधूरे छोड़कर चलेजाना उसे अस्थान छोड़ना कहलाता है।
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