________________
____ भावार्थ:- गाथार्थ वत सुगम है। विशेष यह है कि जिस प्रकार गुरु वंदन से ६ गुणों की प्राप्ति होती है, वैसे ही गुरु वंदन न करने से ६ प्रकार के दोष प्राप्त होते है। वो इस प्रकार हैं।
माणो अविणय रिवंसा , नीयागोयं अबोहि भवदुईढी । अनमंते छदोसा (एवं अडनउय सयम हियं ॥I) धर्म सं वृत्ति
अर्थ:-गुरु वंदन नहीं करने से अभिमान, अविनय, निंदा (या लोगों का तिरकार) नीचगोत्र बंध, सम्यक्त्वका अलाभ, और संसार की वृध्धि, ये ६ दोष उत्पन्न होते हैं।
(इस प्रकार द्वादशावर्त वंदन के १९८ प्रकार (बोल) जानना)
अवतरण:- गुरु के विरह में किसको वंदन करना । तत्संबंधि १५ वा दार
गुरुगुणजुतं तु गुरुं, हाविज्जा अहव तत्य अक्खाई ।
अहवा नाणाइ तियं, हविज सक्खं गुरु अभावे ॥२८॥ शब्दार्थ:- जुत्तं युक्त, सहित, हाविज्जा-स्थापना, अहव अथवा, अक्खाई-अक्ष विगेरे (अरिया विगेरे) सक्खं साक्षात-प्रत्यक्ष, गुरुअभावे= गुरु के विरह में - गाथार्थ:- साक्षात गुरु के विरह में गुरु के ३६ गुण युक्त स्थापना गुरु स्थापना (याने गुरु की सद्भुत स्थापना) अथवा (सद्भूत स्थापना स्थापने का न बन सके तो) अक्षा (चंदन अरिया) विगेरे (की 'असद्भूत स्थापना ) अथवा ज्ञानादि तहारुवाण भंते समणं वा माहणं वा बंदमाणस्स वा पनवासमाणस्स वा वंदणा पखवासणा य किंफला पन्नता?
उत्तर : गोयमा सवणफला इत्यादि आलापक (कहने का) अभिप्राय इस प्रकार है।
हे भगवन्त ! तथा स्वरुप वाले श्रमण-माहण को वंदन करने वाले सेवा करनेवाले साधु की वंदना और पर्युपासना कैसे फलवाली है?. उत्तर: हे गौतम शास्त्रश्रवणरुप फल मिलता है।. प्रश्न: श्रवण का क्या फल? उत्तरः ज्ञान फल।. प्रश्न: ज्ञान का क्या फल? उत्तर: विज्ञान फल।. प्रश्न: विज्ञान का क्या फल? उत्तरः पच्चक्खाण फल. प्रश्न: पच्चक्खाण का क्या फल?. उत्तरः संयम फल | संयम का अनाश्रव, अनाश्रवका तप, तप का व्यवदान-निर्जरा फल, निर्जरा का अक्रिया फल और अक्रिया का सिध्धि गति फल है।
(120)