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सीयलय खुड़डए वीरकन्ह सेवगदु पालए संबे ।
पंचे ए दिडंता, किइकम्मे 'दब्व भावे हि ॥ ११ ॥
शब्दार्थ :- शीयलय - शीतलाचार्य, खुड़ड़ए = क्षुल्लकाचार्य, वीर-वीरक शालवी, कन्ह = कृष्ण, सेवग = दो राजसेवक, पालए= पालक, संबे शाम्बकुमार, पंचे ए=ये प्रांच, दिहंता = दृष्टान्त
गाथार्थ : :- द्रव्य कृति कर्म व भाव कृति कर्म (अर्थात् पांच द्रव्य और पांच भाव गुरु वंदन) के विषय में अनुक्रम से शीतलाचार्य, क्षुल्लकाचार्य, वीरकशालवी और कृष्ण, दो सेवक व पालक और शाम्बकुमार का ये पांच दृष्टान्त है।
विशेषार्थ :- पूर्व गाथा में गुरु वंदन के द्रव्य व भाव से पांच नाम कहे है, उन्हें पांच दृष्टान्तो के द्वारा समजाया गया है। जिस में प्रथम दृष्टान्त में और दूसरे दृष्टान्त में एक ही मुनि ने अलग समय में प्रथम द्रव्य वंदन किया, और बाद में भाव वंदन किया, तथा शेष तीन दृष्टान्तो में एक ने द्रव्य वंदन किया दूसरे ने भाव वंदन किया- वह दर्शाया गया है।
(वंदन कर्म के विषय में शीतलाचार्य का द्रष्टान्त)
(१) श्रीपुर नगर के राजवी शीतल ने श्री धर्मघोषसूरि के पास दीक्षा ग्रहण की, गुरुने योग्य जानकर आचार्य पद दीया । जिससे शीतलाचार्य तरीके प्रसिद्ध हुए । शीतलराजा की बहेन शृंगार मंजरी के चार पुत्र थे, उन चारों ही पुत्रों को शृंगार मंजरी कहा करती थी कि. तुम्हारे मामा ने संसार को छोड़कर आत्म कल्याण का मार्ग स्वीकार किया है, और संसार वस्तुतः असार है, इस प्रकार माँ की उपदेश मयी वाणी सुनकर चारों ही पुत्रों को वैराग्य उत्पन्न हुआ। चारों ने स्थविर भगवंत के पास दीक्षा ग्रहण की, और गीतार्थ बने ।
एकबार गुरु से अनुज्ञालेकर चारों ही विहार करते हुए जिस नगर में अपने मामा शीतलाचार्य विराजमान थे वहाँ पर आये । लेकिन संध्या समय हो जाने के कारण नगर के बाहर ही रहे, और किसी श्रावक के द्वारा समाचार भिजवाये कि "आपके भाणेज मुनि आपको को वंदन करने के लिए आये है", यहाँ पर रात्रि के समय ध्यानस्थ चारों ही मुनि - ओंको केवलज्ञान हो गया । शीतलाचार्य को इस बात का पता नही चला।
(१) इस गाथा में (कृति कर्म (किईकम्म) शब्द पांच वंदन मे से मात्र तीसरे वंदन के अर्थ वाला ही नही है, अपितु सामान्य से 'गुरुवंदन' ऐसे अर्थ वाला है।
(२) श्री ज्ञान विमलसूरि कृत बालाव बोध में हस्तिनापुर पुर इत्यादि नामो का उल्लेख है, लेकिन अन्य किसी ग्रंथ में नही दिखाई देने से यहाँ पर नही कहे हैं।
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