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पण नाम पणाहरणा, अजुग्गपण जुग्गपण चउ अदाया | चउदाय पण निसेहा, चउ अणिसेह-डकारणया ॥७॥ आवस्सय मुहणंतय, तणुपेह पणीस दोस बत्तीसा | छगुण गुरु ठवण दुग्गह, दु छवीसक्खर गुरुपणीसा ॥ ८॥ पय अहवन छठाणा, एग्गुरुवयणा 5 सायणतित्तीसं ।
दुविही दुवीस दारेहि, चउसया बाणउड़ ठाणा |||| शब्दार्थ वी गाथा के :पण-पांच, आहरणा=उदाहरण,दृष्टान्त, अजुग्ग=(वंदन के) अयोग्य, जुग्ग=(वंदन के) योग्य, अदाया (वंदन) नहि करे, निषेहा=निषेध स्थान, अणिसेह-अनिषेध स्थान, (अ) -आठ, कारणया कारण
शब्दार्थ ८ वी गाथा के:
मुहणंतय= मुहपत्ति मुखानंतक, गुरुठवण=गुरु की स्थापना, तणुपेह-शरीर की प्रतिलेखना, दुग्गह-दो अवग्रह, पणीस-पच्चीस, दुछवीसक्खर-दोसौ छब्बीस अक्षर
शब्दार्थ : वीं गाथा के :: अडवन्न अट्ठावन, असायण आशातना (गुरु की), दुवीस-बावीस,
गाथार्थ:- गुरु वंदन के पांच नाम, पांच द्रष्टान्त, वंदन के अयोग्य पांच प्रकार के साधु, वंदन के योग्य पांच प्रकार के साधु, चार प्रकार के साधु वंदन न करे, (अर्थात् चार प्रकार के साधुओ के पास वंदन नहि करवाना चाहिये) चार प्रकार के साधु को वंदनं करे, वंदन केपांच निषेधस्थान, और चार अनिषेध स्थान, तथा वंदन केआठ कारण कहे जायेंगे
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॥७॥
___तथा २५ आवश्यक का वर्णन, मुहपत्ति की २५ प्रतिलेखना का वर्णन, शरीर की २५ प्रति लेखना का वर्णन, वंदन के समय टालने योग्य ३२ दोषों का वर्णन, वंदन के छ गुणों का वर्णन, गुरु स्थापना वर्णन, दो प्रकार का अवग्रह,(गुरु से दूर खड़े रहने की मर्यादा), वंदन का सूत्र के २२६ अक्षर, और उस में २५ गुरु अक्षर (जोडाक्षर) का वर्णन, इस प्रकार, ||८----
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