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उपसंहार कर्ताका नाम, और अत्य मंगल सम्वोवाहि - विसुध्यं एवं जो वंदर सया देवे ।
देविदं-विदं-महिअं-परम-पयं पावड़ लहसो ॥३॥ अन्वय :- एवं जो सया देवे वंदए सो सव्वोवाहिविसध्धं
देविदं-विदंमहिअं परम-पयं लहु पावइ ॥३॥ शब्दार्थ:- सव्व = सर्व, उवाहि = उपाधि धर्मचिंता, विसुद्धं = शुद्ध, जो = जो मानव, सया = सदा. प्रतिदिन, देविदं = देवके इंद्र, अथवा देवेन्द्रसूरि, विंद = समूह, विंद = विचार, ज्ञानवाला, महिअ = पूजित, अहि =अधिक, अं-कं ज्ञानवाला, परमपय=परमपद, मोक्ष, पावइ= प्राप्त करे, लहु-लघु, शीघ्र, सो= वो मनुष्य ||३||
गाथार्थ:-इस तरह जो मानव देवको प्रतिदिन वंदना करे, वो मानव देवेन्द्रो के स्मुह द्वारा पूजित सर्व उपाधियों से शुद्ध बना हुआ शिघ्र मोक्षपद प्राप्त करे ! ||६३॥
विशेषार्थ:- दूसरा अर्थ:- सर्व धर्म चिंतनदारा विशुद्ध तथा देविदं श्री देवेन्द्र सूरि द्वारा विदं दर्शाये गये विचारवाला (याने जिसका विधिस्वरूप दर्शाने वाले श्री देवेन्द्रसूरि हैं : ऐसा और अं कं= ज्ञान से अहि = अधिक, याने श्री देवेन्द्रसूरि ने अपने बोध के अनुसार जिस तरह जाना वैसे दर्शाया है) ऐसा जो देववंदन (चैत्यवंदन भाव्य) एवं = उसमें कही गयी विधि मर्यादानुसार जो मनुष्य प्रतिदिन देव को वंदना करता है, वह शिघ्रमोक्ष पद को प्राप्त करता है। ये दूसरा अर्थ अवचूरि के आधार से दिया है ॥३॥
॥ इति प्रथम भाष्य ||
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