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श्रावक को करने के चैत्यवंदन पडिकमओ गिहिणो विहु सग-वेला पंच वेल इयरस्स।
पूआसु ति-संझासु अ होइ ति-वेला जहन्नेणं ||६|| अन्वयः- पडिकमओ गिहिणो विहु सगवेला
इयरस्स पंचवेल,जहल्लेणं ति संझासु पूआसु तिवेला होई ||६|| . शब्दार्थ:- पडिकमओ = प्रतिक्रमण करनेवाले, गिहिणो = गृहस्थको विहु-निश्रय से, सग-वेला = सातबार, पंचवेल = पांचबार, इयरस्स =इतर गृहस्थ को (प्रतिक्रमण नहि करने वाले को) पूआसु = पूजामें, ति-संझासु-तीन संध्याओं की, ति-वेला तीन बार, जहल्लेणं-जघन्य से 100
गाथार्थ:- प्रतिक्रमण करने वाले गृहस्थ को भी सातबार या पांचबार और प्रतिक्रमण नहि करने वाले गृहस्थको प्रतिदिन तीन संध्याकाल की पूजा में जघन्य से तीन बार चैत्यवंदन करना।
विशेषार्थ:- प्रातःकाल के प्रतिक्रमण में दो बार (निद्रात्याग व प्रतिक्रमण का), त्रिकाल देववंदन के ३, संध्याकाल के प्रतिक्रमण का १, और रात्रि में शयन करने पूर्व मुनि भगवन्तों से संथारापोरिसी सुनने का इस प्रकार राई देवसि प्रतिक्रमण करने वाले श्रावक को ७ बार चैत्यवंदन होते हैं।
प्रातः काल एक बार प्रतिक्रमण करने वाले श्रावक को ६ बार (अर्थात् रात्रि सोने के | समय प्रतिक्रमण न करे उसको) ____प्रातः काल का प्रतिक्रमण न करने वाले श्रावक को पांचबार, क्योंकि प्रातः काल के प्रतिक्रमण में दो चैत्यवंदन एक तो शयनत्याग का और दूसरा प्रतिक्रमण का होता है, वह नहीं करने पर पांच बार । क्योंकि ये दोनों चैत्यवंदन प्रातःकाल के प्रतिक्रमण के अंतर्गत है। इस प्रकार ५ चैत्यवंदन ज्ञात होते है , अन्यथा एक प्रतिक्रमण नहि करने वाले को ६ चैत्यवंदन होते है।
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