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८.
९.
खलिनः - कायोत्सर्ग में अश्व की लगाम की तरह ओघा या चरवला पकड़ना
अथवा इंडी पीछे और गुच्छा आगे रख के खड़े रहना ।
११.
वधूः- कायोत्सर्ग में वधू के माफक
काउस्सग्ग करना ।
१०. लंबुत्तरः- कायोत्सर्ग में धोती या चोलपट्टा नाभि से चार अंगुल नीचे और
घुटने से चार अंगुल ऊंचे रखने के बदले लंबा रखना ।
मस्तक नीचे झुकाकर
थणः- स्त्री के माफक सीने पर वस्त्र ओढकर काउस्सग्ग करना ।
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१२. संयती: - साध्वीजी की तरह मस्तक के विना संपूर्ण शरीर ढककर
काउस्सग्ग करना ।
१३. भ्रमितांगुली :- कायोत्सर्ग में नवकारादि गिनने के लिए अंगुलि घुमाना या नेत्र के भवे इधर उधर फिराना ।
१४. कौआ :- कायोत्सर्ग में कौए की तरह इधर उधर देखना ।
१५. कोठे का फलः - वस्त्र को मलीन होने के भय से (प्र.व. सारो० ) या षट्पदिका विगेरे के भय से धोती की पटली को कोठे के फल की तरह (गेंद की तरह) गोल इकट्ठी करके पांव के बीच दबाना |
१६. शिरकंप:- कायोत्सर्ग में मस्तक को हिलाते रहना ।
१७. मूक:- कायोत्सर्ग में गूंगे की तरह हूं, इं करते रहना ।
१८. मंदिरा:- मदिरा परिपक्व होती है तब उसमें बुड़ बुड़ शब्द का आवाज आता है, वैसे ही काउस्सग्ग करते समय बड़बड़ाते रहना ।
१९. प्रेक्षादोष:- कायोत्सर्ग में बन्दर की तरह ऊँचे - नीचे गर्दन झुकाते हुए
देखते रहना ।
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