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विशेषार्थ:-अन्नत्य =उससिएणं से लेकर दिट्ठी संचालेहिं पर्यन्त के बारह आगार होते हैं । वो इस प्रकार हैं ...... १. श्वास लेना २. श्वास छोड़ना ३. खाँसी आना ४. छींक आना .. जम्हाई (बगासा)आना ६. डकार आना 8. अपानवायु सरना ८. चक्कर आनाफ . पित्त विकार से मूर्छा आना १०.सूक्ष्म अंगों का चलना ११.सूक्ष्म कफ का संचार १२.सूक्ष्म द्रष्टि संचार - ये बारह आगार अर्थात् काउस्सग्ग में रुकावट न आये उसके लिए रखीगयी छुट या अपवाद - जिससे काउस्सग्ग का भंग नहीं होता है। यदि इन आगारों को छुट तरीके न रखा गया होता और काउस्सग्ग करते तो स्वाभाविक रीत से होनेवाली इन बारह क्रियाओं से सर्वथा निष्क्रियता से कियाजाने वाले काउस्सग्ग का भंग ही गिना जाता। ये बारह आगार तो एक स्थान पर काउस्सग्ग में खड़े रहने संबंधी है । लेकिन काउस्सग्ग के नियतस्थान से हटकर अन्य स्थान पर जाने पर भी काउस्सग्ग अखंड गिना जाय वैसे भी अन्य चार आगार है। ..१. बीजली दीपक विगेरे का प्रकाश तथा जिसमें अग्निकाय के जीव होते हैं। उनका शरीर से स्पर्श होने पर नाश होता है। उस नाश को रोकने के लिए चालु काउस्सग्ग में अन्य स्थान पर (प्रकाश रहित स्थान पर) जाना पड़े या वस्त्र से शरीर ढकना पड़े, या अग्नि का प्रकोप हो गया हो तो अन्य स्थान पर जाना पड़े, फिरभी काउस्सग का भंग नहीं होता
२. स्थापनाजी और हमारे बीच में चूहा बिल्ली विगेरे पंचेन्द्रिय जीव आड़े उतरते हो तो उस छिंदन (आइ) का निवारण करने के लिए अन्यत्र जाने पर काउस्सग्ग का भंग नहीं होता है। ___ ३. या पंचेन्द्रिय जीवों का कोई वध करता हो ऐसे समय में अन्यत्र जाने पर पणिंदि छिदण आगार के कारण काउस्सग्ग का भंग नहीं होता है।
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