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लोगस्स
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नामस्तव पुक्खरवरदी श्रुतस्तव सिद्धाणं बुद्धाणं सिद्धस्तव जावंति चेइआई । चैत्यवंदन सूत्र | ० जावंति के विसाहु | मुनिवंदन सूत्र | ० जयवीयराय प्रार्थना सुत्र | ० (प्रथम र गाथा)
, दंडक व उसमें आनेवाले १२ अधिकार पण बंडा सळत्यय-चेहय-नाम सुअ सिद्धाथय इत्य । दो इग दो दो पंच य अहिगारा बारस कमेण ||१||
शब्दार्थ:-पण पांच, इत्य = यहाँ (पांच दंडक में) दंडा-दंडक, सक्कल्दत्थय -शक्रस्तव, चेइय-चैत्य, सुअ-श्रुत, सिध्धत्थय-सिध्धस्तव, अहिगारा-अधिकार
. गाथार्य :- शक्रस्तव, चैत्यस्तव, नामस्तव, श्रुतस्तव, और सिध्धस्तव ये पांच दंडक है । (उनमें) अनुक्रमसे २-१-२-२-५ इस तरह अधिकार हैं। ॥४१॥
भावार्थ :- तीर्थंकर पदवी प्राप्ति से पहले भी (जन्म कल्याणक प्रसंग पर) सौधर्म कल्पका शक्र नामका ईन्द्र नमुत्थुणं सूत्र द्वारा परमात्मा की स्तुति करता है, इसलिए नमुत्थुणं का गौण' नाम "शक्रस्तव" है । और नमुत्थुणं आदान नाम है । अरिहंत चेइआणं चैत्य के विषयमें स्तुति और कायोत्सर्ग दर्शाने वाला सूत्र है, अतः उसका गौण नाम “चैत्यस्तव" है ।
(१) श्री अनुयोगदार में १० प्रकार के नामो के प्रसंग पर जिस सूत्र का नाम आदि पद से जाना जाता है,उसे आदान नाम व गुणों के आधार से जाना जाने वाला नाम गौण नाम कहा गया है ।
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