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६. पुक्खरवरदी में “देवनाग” के स्थानपर “देवनाग" कहते हैं । जिससे संयुक्त व्यंजन ३४ के स्थान पर ३५ होते हैं । इस प्रकार ६ सूत्रों में संयुक्त व्यंजनों का मतान्तर समजना | और पूर्व में दर्शाये गये संयुक्त अक्षर के सिवाय शेष बचे हुए लघु अक्षर इस प्रकार हैं। लघु अक्षर नवकार में ६१, खमासमण में २५, इरियावहिया में १७५ नमुत्थुणं में २६४, चैत्यस्तवमें २००, लोगस्समें २३२, पुक्खरवर में १८२ सिद्धाणं में १६७ और प्रणिधानत्रिक में १४० हैं । इस प्रकार उपरोक्त : सूत्रों के अलावा शेष स्तूति स्तवन और चैत्यवंदन (नमस्कार रुप) विगेरे भी चैत्यवंदन में आते हैं । लेकिन वो नियत नहीं होने के कारण उनके अक्षरों की गणना नहीं हो सकती ॥ इति ८-९-१० वा दार ||
(गुरु)अक्षर
अक्षर-अक्षर
- व १० वे दार का यंत्र सूत्र के | सूत्र के पद संख्या संपदा संयुक्त | लघु | सर्व 'आदान नाम गौण नाम 'नवकार | पंच मंगल श्रुत
स्कंध इच्छामि । प्रणिपात या खमासमणो. थोभ सूत्र इरियावहियं । प्रतिक्रमण सूत्र | ३२८ २४ । तस्सउत्तरी , (सहित) नमुत्थुणं शक्रस्तव या
३३ | २६४/ ९७ प्रणिपात दंडक अरिहंत चेइआणे चैत्यस्तव या । ४३ ८ २९ / २००/ २२९ अन्नत्य (सहित) कायोत्सर्ग दंडक
१. सूत्र के आदि पदवात्मा नाम वह आदान नाम, और गुण वाचक वह गौण नाम कहलाता है। २. “नवकार ये आदान नाम नहीं है, लेकिन लगता है ये नाम अनादि है।
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