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६. जीव संपदासे- सर्व जीवों का क्रमानुसार संग्रह हो सके, उस तरीके से संग्रह ... सूचित करने के लिए जीवों की जातियां गिनायी है । ७. विराधना संपदा से -हिंसा विराधना के प्रकार ११ पदों में विस्तार पूर्वक
गिनाये है। ८. प्रतिक्रमण संपदासे-उन सर्व दोषों के प्रतिक्रमण का अभ्युपगम स्वीकार ... का निर्वाह करने में आया है।
हमारी समझ के अनुसार तस्स मिच्छामि दुलई, ये पद प्रतिक्रमण रूप और तस्सउत्तरी-के पद प्रतिक्रमण प्रायश्चित अर्थात् उत्तर प्रायश्चित रुप याने कायोत्सर्ग प्रायश्चित रुप ज्ञात होता है। लेकिन पूर्वाचार्यों की व्याख्या में इसी प्रकार है, अतः उसी तरह रखा है। तस्स मिच्छामि संपूर्ण तस्सउत्तरी सूत्र को प्रतिक्रमण प्रायश्चित रूप लें, तो भी अपेक्षा विशेष अडचन नही आती है । लेकिन इस प्रकार करने से विराधना संपदा के |१० पद ही रह जाते है। वहाँ पर विरोध आता है । इसलिए अन्य आचार्य भगवतों को तस्सउत्तरी से प्रतिक्रमण प्रायश्चित मान्य है । ऐसा स्पष्ट समझ में आता है । फिर भी विराहिया तक पांचवी, पंचिदिया तक छडी और तस्स मिच्छामि तक ७ वी और काउस्सग्गं तक आठवीं संपदा । इसप्रकार के मन्तान्तर को उल्लेख संघाचार वृत्ति में किया गया है।
शेष तीन तीन संपदाओं को चूलिका के अंदर की संपदा कही गयी है। इसके आधारसे इर्यापथिकी सूत्र का मुख्य पाठ पंचिंदिया तक का है । इस प्रकार ज्ञात होता है ।
| इरियावहिया की संपदाएं ८ संपदा के नाम । संपदा के प्रथम पद | संपदा के सर्व
पद १. अभ्युपगम
इच्छामि २. निमित्त
इरियावहियाए ३. ओघ(सामान्य) हेतु गमणागमणे ४, इत्तर (विशेष) हेतु पाणळमणे ५. संग्रह
जे मे जीवा विराहिया ६. जीव
एगिंदिया ७, विराधना
अभिहया ८. प्रतिक्रमण
-तस्स उत्तरी
- % 3D
कुल
-330