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- चैत्यस्तव की संपदाएँ,पदों की संख्या और आदि पद दु-छ-सग-नव-तिय-छ-चउ-छ-प्पय चिह-संपया पया पढमा। अरिहं-वंदण-सद्धा-अन्न-सुहुम-एव जा-ताव || ७॥
_(अन्वय :-दु-छ-सग-नव-तिय-छ-च्चउ-छ-प्पय, चिइ-संपया,अरिहं०वंदण०-सद्धा०-अन्न०-सुहम०-एव० जा०-ताव० पढमा पया ॥३७॥
शब्दार्थ :- दु-दो, छम्छ, सग सात, नव-नौ, तिय-तीन, छ-छ, च्चउ चार, छप्पय छ प्रकार, चिइसंपया चैत्यस्तव की संपदा, पया पद, पढमा प्रथम ॥३७॥
गाथार्थ :- दो,छ,सात,नौ,तीन,छ,चार,और छ प्रकार के पदवाली चैत्यस्तव की संपदाएँ है। और अरिहं. वंदण.सद्धा. अन्न. सुहुम. एव. जा. ताव उसके आदि पद है॥३७॥
चैत्यस्तव की आठ संपदाओं के नाम अब्भुवगमो निमित्तं हेऊ इग-बहु-वयंत आगारा । आगंतुग- आगारा उस्सग्गा-ऽवहि स-सव-56 ॥३८॥
(अन्वय :-अब्भुवगमो निमित्तं हेऊ इग-बहु-वयंत आगारा ,आगंतुगआगारा, उस्सग्गा-5वहि स-रूव-58 ॥३८॥
शब्दार्थ :- अब्भुवगम अभ्युपगम, स्वीकार, निमित्तं-निमित्त, हेऊ =हेतु, इग-एक, बहु-बहु, वयंत वचनांत, आगारा आगार, इग-बहु-वयंत-आगारा =एक वचनान्त और बहु वचनान्त आगार, आगंतुग आगंतुग (आ जावे वैसे ), आगंतुगआगारा-आगंतुग आगार, उस्सग्ग-कार्योत्सर्ग, अवहि-अवधि, मर्यादा, सरूव-स्वरूप उसग्गा-ऽवहि-स, रूव =कार्योत्सर्ग की मर्यादा और स्वरूप, अह-आठ ॥३८॥
गाथार्थ :-अभ्युपगम,निमित्त,हेतु,एक और बहुवचनान्त आगार आगंतुग आगार, कार्योत्सक की अवधि, और स्वरूप इस प्रकार आठ (संपदाएं) है।
विशेषार्थ :-यहाँ पर अरिहंत चेइआणं सूत्र को अन्नत्य सहित लीया है। इसलीए अरिहंत चेइआणं की तीन और अन्नत्य की पांच संपदाएँ है।