________________
हरियावहिया में संपदाओं के पदो की संख्या और आदि (प्रथम) पद दुग दुग इग चउ इग पण इगार छग इरिय संपदाऽऽइपया इच्छा हरि गम पाणा जेमे एगिंदि अभि तस्स ॥ ३२ ॥ शब्दार्थ :- इरिय-संपयाइ इरिया वहिया की संपदा के, दुग- दुग - इग - चउइग- पण- इगार- छग = दो, दो, एक, चार, एक, पांच, अग्यारह, और छ पया- पद है । इरियसंपयाsss - पया = इरियावहिया की संपदाओं के आदि प्रारंभ के पद ॥ ३२ ॥
गाथार्थ :- इरियावहिया की संपदाओं के दो, दो. एक. चार. एक, पांच, अग्यारह, और छ पद है। इरियावहिया की संपदाओं के प्रारंभ के पद इच्छा० इरि० गम० पाणा० जे मे० एगिंदि० अभि० तस्स० है ।
विशेषार्थ :- संपदाओं के प्रारंभ के पदों के मात्र शुरूआत के अक्षर ही कहे है। उसके आधार पर पूर्ण पदों को समझना । जैसे कि इच्छा० " इच्छामि पडिक्कमिउं" विगेरे संपयाइ पया अर्थात् संपदा के पद और संपया - Sss-पया अर्थात् संपदा के प्रारंभ के पद, इस प्रकार दो तरीके से पदच्छेद किया गया है।
इरियावहिया की आठ संपदाओं के सहेतुक विशेषनाम
अब्भुवगमो निमित्तं ओहेअर हेउ संगहे पंच --
जीव - विराहण-परिक्रमण-भेयओ तिन्नि चूलाए ॥ ३३ ॥
B
शब्दार्थ : - अब्भुवगमो = स्वीकार, निमित्तं निमित्त, ओहेयर - हेउ = ओघ - सामान्य हेतु, और इत्तर अर्थात् विशेष हेतु, संगहे संग्रह, पंच पांच, जीव-विराहण-पडिक्कमणभेयओ = जीव पराधना और प्रतिक्रमण के भेदसे, तिन्नि-तीन, चूलाए - चूलिका में ॥ ३३ ॥
=
गाथार्थ :- अभ्युपगम, निमित्त, सामान्य, और विशेष हेतु, संग्रह ये पांच और चूलिका में जीव, विराधना, और प्रतिक्रमण, के भेद से तीन ॥ ३३ ॥
विशेषार्थ :- इरियावहिया में आलोचना और प्रतिक्रमण प्रायश्चित है। अर्थात् १. अभ्युपगम संपदा से प्रतिक्रमण करने के लिए स्वीकार होता है।
२. निमित्त संपदासे - प्रतिक्रमण किसलिए करना ? प्रतिक्रमण में लगनेवाले दोष जिस निमित्त से उत्पन्न हुए हों, उन निमित्तो को दर्शाया है।
३. सामान्य हेतु संपता से - जिस दोष को दूर करने के लिए प्रतिक्रमण करने में आता है, उस दोष का सामान्य कारण बताया है।
४. विशेष हेतु संपदा से दोष के विशेष कारण गिनाये है।
५. संग्रह संपदा -हिंसा रूप दोष लगने के निमित्त रूप होनेवाली सर्व जीवों की • हिंसा का संग्रह बताने में आया है ।
32