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१0 30 संपदाएँ अह-5-नव-56 य अह-वीस सोलस य वीस वीसामा । कमसो मंगल -इरिया-सळ-त्थया ऽइसु सग नउई ॥२॥
अन्वय :-कमसो मंगल -इरिया-सव-त्थया ऽइसु अहऽह नवऽह अहवीस सोलस य वीस वीसामा सग नउइ ॥२९॥
शब्दार्थ :-अहऽह नवह =आठ, आठ, नौ, आठ, अहवीस अहावीस, सोलस-सोलह, वीस-बीस, वीसामा विश्रामस्थान संपदाएँ, कमसो क्रमानुसार, मंगल-नवकार मंत्र, इरिया=इरियावहिया, सवत्थया-ऽऽइसु-शक्रस्तव विगैरे में, सग-नउई =सित्यानवे,सत्तागुं,||२९|| . गाथार्थ :- क्रमानुसार नवकार, इरियावहिया, शक्रस्तव आदि में आठ, आठ नव, आठ,अट्ठावीस,सोलह और बीस इसप्रकार कुल सत्ताणुं संपदाएँ है ॥२७॥
विशेषार्थ :- इन संपदाओंकी आने महापदोंकी अथवा विश्रामस्थलकी गिनती भी पदों को लेकर की है। जिस जिस के पदों की गिनती नहीं की, उनकी संपदा भी उसी प्रकार अनुकरण करना । जिससे इच्छामि खमा.सूत्र की "जे अ अइया" की एक गाथा की,और सव्वलोए इत्यादि संपदाएँ भी गिनती नहीं की।लेकिन यहाँ पर संपदाओं का प्रयोजन उस उस स्थान पर विश्राम करने के लिये है। तथा जहाँ जहाँ ४ पादवली एक गाथा होती है
वहाँ (नवकार का चूलिका श्लोक छोडकर) सर्व स्थानपर एक चरण का एक पद और एक |संपदा गिनी जारी है । ॥२९॥
प्रत्येक सूत्र के वर्ण, पद और संपदाएँ, नवकारमें वन-58-सहि नव-पय नवकारे अह संपया तत्य | सग-संपय पय-तुल्ला, सतरक्खर अहमी दु-पया ॥३०॥
"नवक्खरहमी दुपय छडी" इत्यन्ये अन्वय :- नवकारे अह-सहि वन्न,नव पय,अहसंपया, तत्थ-सग-संपय पयतुल्ला अहमी सतरक्खर दु-पया ॥३०॥ अहमी नव-अक्खर छही दु-पय" इत्यन्ये)
शब्दार्थ :-वन-वर्ण, अक्षर,अह सही-अडसठ, नव-पय-नौ पद, तत्थ उसमें, सग संपय-सातसंपदा, पय तुल्ला=पद की तरह, सत्तर ऽक्खर-सतरह अक्षरों की, | अहमी आठवी, दु-पया दो पदोंकी,॥३०॥ नवऽवखर नौ अक्षर की, अहमी आठवी, दु-पय-दो पदों की, छटी-छही, इत्यन्ये= इस प्रकार अन्य आचार्य कहते है ।
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