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. १८१ पद नव -बतीस-तित्तीसा ति-चत्त-अडवीस -सोल-वीस पया । - मंगल- इरिया-सळ-त्यया ऽऽइसु एगसीइ-सयं |२८||
. अन्वयः- मंगल -इरिया -सक्वत्थयाइसु नव -बत्तीस तितीसा -तिचत्त-अडवीस |-सोल -वीस पया एगसीइ -सयं ॥२८॥. . शब्दार्थ :- नव-बतीस-तित्तीसा= नौ,बत्तीस और तेंतीस, ति -चत्त-अडवीससोल-वीस-तियालीस, अट्ठावीस, सोलह, और बीस, पयाः पद, मंगल-इरियासवत्थया ऽऽइसु= मंगल नवकार, इरियावहिया और शक्रस्तव आदि में , एग-सीइसयं-एक सौ इक्यासी ॥२८॥
गाथार्थ:-मंगल,इरियावहिया,शक्रस्तव आदि में नौ,बत्तीस,तेंतीस तियालीस अहावीस,सोलह, बीस. एक सौ इक्यासी पद है। . विशेषार्थ :- अक्षरों की गिनती में प्रथम कहे अनुसार ही पदों की गिनती उन उन अक्षरों तक की है इस प्रकार न समजे । लेकिन कितनेक सूत्रो में तो भिन्न तरीके से पदों की गिनती की है। वो इस प्रकार नवकार संपूर्ण,इरियावहिया में “गमिकाउस्सग्गं" तक नमुत्थुणं में “जीअभयाणं " तक चैत्यस्तव में संपूर्ण अन्नत्थ तक लोगस्स में "दिसन्तु" तक पुवखरवरदी में संपूर्ण ४ गाथा तक, सिद्धाणं में संपूर्ण ५ गाथा तक, वैयावच्च० आदि विगेरे। इस प्रकार वर्णो की गिनती अलग तरीके से १८१ पदों की गिनती की है । ये भिन्न गिनती संपदाओं को लेकर की है। जिससे संपदाओं और पदों की गिनती एक समान है। और वर्ण की गिनती अलग तरीके से है।
इस जगह पद एक शब्द का या अधिक शब्दों का भी होता है । कारण किविवक्षित अर्थ जहाँ पूर्ण होता है वहाँ एक पद अथवा अनेक शब्दों का वाक्य भी पद गिना जाता है । अथवा गाथाओं के पद को भी पद कहा जाता है । । तथा सन्वलोए-सुअस्स भगवओ-वेयावच्चगराणं-संतिगराणं सम्मदिहि समाहिगराणं - इन पांच पदों के वर्ण की गिनती की है लेकिन संपदाएँ नही गिनी। इसलिए पद भी नहीं गिने। यदि गिनती करें तो १८६ पद होते है । तथा इच्छामि खमाo-तीन प्रणिधान सूत्र और जे अ अहया सिद्धा" के चार पद, इन सारे पदों और संपदाओं मे किसी भी कारण का विचार करके श्री पूर्वाचार्योने नहीं गिने । इस प्रकार भाष्य की अवचूरि में कहा है।॥२८॥