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वे लोकमान्य के सदृश देशोन्नति के लिए न्यौछावर होने वाले विद्वान
असहयोग आन्दोलन और जैन समाज की भूमिका
महात्मा गाँधी ने रौलट एक्ट, जलियाँवालाबाग हत्याकाण्ड एवं ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों से त्रस्त होकर 'असहयोग आन्दोलन' का प्रारम्भ कर दिया। असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम में रचनात्मक एवं नकारात्मक दोनों पक्षों का समन्वय किया गया। रचनात्मक कार्यक्रम के अंतर्गत हिन्दू-मुस्लिम एकता, अहिंसा, सत्याग्रह, अछूतोद्धार एवं स्वदेशी प्रचार को मुख्य रूप से प्रचारित किया गया, जबकि नकारात्मक कार्यक्रमों के अंतर्गत कॉलेजों, परिषदों एवं न्यायालयों के बहिष्कार का आह्वान किया गया। गाँधी जी द्वारा दिये गये कार्यक्रमों के अनुसार भारतीय जनता ने ब्रिटिश सरकार को चुनौती देने के लिए कमर कस ली । आन्दोलन के 'अहिंसा' से प्रेरित होने के कारण जैन अनुयायियों ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया । असहयोग आन्दोलन के दौरान जगह-जगह जैन समाज ने अपनी गिरफ्तारियां दी तथा अपनी सरकारी उपाधियों को त्याग दिया ।
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26, 27 दिसम्बर 1920 को अहमदाबाद में 'जैन राजनैतिक सम्मेलन' बुलाया गया, जिसमें बड़ी संख्या में पूरे भारत के जैन समाज ने भागीदारी की। इसके माध्यम से असहयोग आन्दोलन को पूर्ण रूपेण स्वीकार कर जैन समाज ने प्रत्येक प्रान्त में आन्दोलन को सुव्यवस्थित चलाने की रणनीति बनाई । तत्कालीन समाचार पत्र 'आज' ने लिखा, खिलाफत सम्मेलन के मण्डप में जैन धर्म भूषण ब्रह्मचारी
असहयोग आंदोलन के दौरान हुई एक सभा का दृश्य
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