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अहिंसा परमोधर्मो यनोधर्मस्ततो जय
जीवदया प्रचारिणी सभा के कार्यकर्ताओं की बैठक का दृश्य
स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान (1919-1947) तत्कालीन संयुक्त प्रान्त में जैन समाज ने अंग्रेजी सरकार का तो खुलकर विरोध किया ही, साथ ही समाज में फैली विभिन्न कुरीतियों को दूर हटाने के लिए भी काफी प्रयत्न किया।
आगरा में स्थापित श्री जीवदया प्रचारिणी सभा ने पूरे प्रदेश में पशुओं की बलियों को रोकने हेतु अपना बड़ा दल बनाकर महत्वपूर्ण कार्य किया । इस दल ने नवम्बर 1926 में पेंडत (जखैया) आगरा में होनेवाले विशाल मेले के अवसर पर दी जाने वाली पशु बलि को रुकवा दिया। इस मेले में हजारों की संख्या में लोग आते और कई मील दूर तक तम्बू गाड़कर ठहरते। आनेवाले यात्री देवी माँ को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बलि (विशेषकर सुअरों की) देते थे । जीवदया प्रचारिणी सभा ने इस कुरीति को समाप्त करने के लिए 115 स्वयंसेवकों का गिरोह एकत्रित किया। इस कार्य में अवागढ़ (एटा) की सेवासमिति, कुरावली सेवा समिति, फिरोजाबाद सेवा समिति और जसराना स्काउट कमेटी के स्वयंसेवकों ने भी अपना योगदान दिया ।
इन सभी स्वयंसेवकों ने बलि देनेवाले यात्रियों को 'अहिंसा' का उपदेश दिया तथा समझाया कि देवी माँ बलि देने से प्रसन्न नहीं होती और बलि देना महान पाप है। बहुत संख्या में यात्रियों ने स्वयंसेवकों की बात को मानकर बलि नहीं दी, परन्तु कुछ यात्री आसानी से न माने, उन्होंने मेला परिसर से बाहर जाकर बलि देनी चाही, परन्तु स्वयंसेवकों ने लाला नेमिचन्द जैन (आगरा) के नेतृत्व में मौके पर पहुँचकर उनका यह प्रयास भी विफल कर दिया और पूर्ण रूप से हिंसाबंदी कर दी । जीवदया प्रचारिणी सभा आगरा ने विन्देसरी देवी 'विंध्याचल' में प्रतिवर्ष होने
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202 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान