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विरोध की लहर फैल गयी। इन अफसरों को बचाने के लिए भारत के प्रख्यात वकीलों ने मिलकर 'आजाद हिन्द फौज बचाव समिति का गठन किया । इस समिति को कार्य करने के लिए धन की भी आवश्यकता थी । अतः धन को एकत्रित करना प्रारम्भ किया गया। जैन समाज ने भी इस कार्य में बढ़-चढ़कर दान दिया ।
ललितपुर के हसेरा गाँव में जन्मे प्रसिद्ध जैन सन्त श्री गणेशप्रसाद वर्णी का प्रवास नवम्बर 1945 में जबलपुर (म.प्र.) में चल रहा था । प्रातःकाल उनके प्रवचन सुनने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे । इन लोगों में मध्य प्रान्तीय सरकार के गृह सदस्य पंडित द्वारकाप्रसाद मिश्र, राष्ट्रीय कवि नरसिंह दास और कई ध रायबहादुर भी उपस्थित थे । प्रवचन के दौरान श्री वर्णी ने तत्कालीन परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए आजाद हिन्द फौज की सहायतार्थ अपनी चादर को समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा - भइया! मेरे पास सिर्फ दो चादर हैं । उनमें से मैं एक चादर देता हूँ। यह जितने में बिके सो बेच लो। मैं तो उन आजाद हिन्द फौजियों की रक्षा के लिए अपना हृदय और यह चादर, दोनों अर्पण करता हूँ। 2
जैन संत के इस वाक्य का पूरी जनसभा में एक अनोखा प्रभाव पड़ा। सभा में उपस्थित एक श्रद्धालु ने वर्णी जी की चादर को 3001/- रुपये में लेकर पुनः उसे वर्णी जी को प्रदान कर दी । उपस्थित भक्तों ने भी यथाशक्ति धन का दान किया । इस धन को 'आजाद हिन्द फौज' की सहायता के लिए भेजा गया । जैन संत भावना के प्रभावस्वरूप और राष्ट्रीय नेताओं के निरन्तर विरोध के कारण ब्रिटिश सरकार को आजाद हिन्द फौज के अफसरों की सजा को समाप्त करना पड़ा और सैनिक अफसरों को रिहा कर दिया गया । इस प्रकार जैन समाज के आम नागरिकों से लेकर जैन सन्तों ने भी आजाद हिन्द फौज में अपनी भरपूर मदद दी ।
अन्य महत्वपूर्ण योगदान
जैन समाज के अनेकों देशभक्तों ने जो प्रत्यक्ष रूप से आन्दोलन में भागीदारी नहीं कर पाये, अप्रत्यक्ष रूप से देश की सेवा की। ऐसे देशभक्तों में आगरा निवासी लाला भरोसीलाल जैन भी एक थे । लाला जी ने सावन कटरा स्थित अपना मकान प्रमुख क्रांतिकारी भगत सिंह को दे रखा था । भगत सिंह इस मकान में एक मैडिकल स्टुडेन्ट के रूप में काफी समय रहे। उन्होंने अपना छदम् नाम बलवन्त सिंह ख हुआ था । लाला जी के मकान में पूरे प्रान्त एवं देश के क्रांतिकारी आते रहते थे । उनके मकान में काफी संख्या में विस्फोटक सामग्री रहती थी और वहीं बम भी बनाये
थे। यह स्थान इतना गुप्त था कि कोई भी यह न जान सका कि मकान में क्या होता है और कौन रहता है?
भरोसीलाल जैन सब कुछ जानते हुए भी इसलिए मौन रहते थे, क्योंकि वे मानते
206 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान