Book Title: Bhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Author(s): Amit Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 207
________________ सेवा के निदेशक एवं नेताजी के निजी चिकित्सक के रूप में महत्वपूर्ण सेवाएँ दी। राजमल जैन का जन्म यद्यपि नवम्बर 1906 में जयपुर में हुआ था, परन्तु उनका काफी समय संयुक्तप्रान्त में ही व्यतीत हुआ। लखनऊ विश्वविद्यालय से 1929 में उन्होंने एम.बी.बी.एस. की डिग्री ली और उसके बाद उच्च शिक्षार्थ विदेश चले गये। 1931 में श्री जैन ने इंग्लैण्ड से डी.टी.एम. एण्ड एच. तथा 1932 में लंदन से एम.आर.सी.सी. की उपाधियाँ प्राप्त की। 1935 में वे इण्डियन मेडिकल सर्विसेज (आई.एम.एस.) के लिए चुने गये। आई.एम.एस. में चुने जाने के बाद अंग्रेजी सरकार में उन्होंने लेफ्टिनेंट कर्नल तक के विभिन्न पदों पर कार्य किया। ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय डॉ. जैन को अपनी सेनाओं की चिकित्सा हेतु मलाया भेजा। वहाँ उनकी मुलाकात सुभाषचन्द्र बोस से हो गयी। नेताजी की प्रेरणा से राजमल जैन ने अपनी मातृभूमि की सेवा का व्रत लिया। उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी त्याग दी और आजाद हिन्द फौज की सेवा करनी प्रारम्भ कर दी। उनकी योग्यता को देखते हुए नेताजी ने उन्हें आई.एन.ए. के मंत्रिमण्डल का सदस्य एवं चिकित्सा तथा स्वास्थ्य सेवाओं का निदेशक मनोनीत किया। तर सुभाषचन्द्र बोस डा. जैन पर बहुत अधिक भरोसा करते थे। अतः वे श्री जैन को उन नये स्थानों पर सारी व्यवस्था और भूमिका तैयार करने को भेज देते थे, जहाँ आजाद हिन्द फौज पहुँचने वाली होती थी। डॉ. जैन ने भी नेता जी की अभिलाषाओं के अनुरूप राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत बहादुर सैनिक के रूप में कार्य किया। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति पर अंग्रेजी सरकार ने उनसे नाराज होकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया और लम्बे समय तक जेल में बंद रखा। जेल से श्री जैन मई 1946 में रिहा हुए। आजाद हिन्द फौज की सहायतार्थ जैन सन्तों ने भी जैन समाज का आह्वान किया और स्वयं भी इस सेना की सहायता की। अंग्रेजी सरकार ने आजाद हिन्द फौज के कुछ अफसरों के विरुद्ध वफादारी की शपथ तोड़ने और विश्वासघात का आरोप लगाकर उन पर मुकदमा चलाना प्रारम्भ कर दिया। अंग्रेजी सरकार के इस रुख से पूरे देश में डॉ. राजमल जैन 'कासलीवाल' भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अन्य उपक्रमों में जैन समाज का योगदान :: 205

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