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होगा। अगर जैसे आप लिखते हैं, वैसे हर जगह होता होगा, तो यह भयंकर पाप हरिजनों का नहीं हमारा है, वैसे मैं मानूंगा कि हमने उनकी घोर उपेक्षा की है। उसका ही यह परिणाम हो सकता है।" सेठ अचलसिंह ने महात्मा गाँधी के साथ मिलकर इस कुरीति को दूर करने हेतु काफी प्रयत्न किये।
काशी में जैन समाज द्वारा स्थापित 'अहिंसा प्रचारक संघ' ने भी पशुबलि रोकने हेतु प्रयास किये। संघ ने काशी के साथ-साथ हजारीबाग (बिहार) जिले के कोल्हुआ पहाड़ पर चैत्र की रामनवमी पर कालेश्वरी देवी के नाम पर होने वाली बलि को रोकने में भी सफलता प्राप्त की। 27
देवबन्द, (जिला-सहारनपुर) में माँ काली के मन्दिर पर कुछ लोग रक्त और मदिरा से शक्ति का आह्वान करते थे। उस समय मंदिर में बकरों का वध किया जाता था । देवबन्द के प्रमुख समाजसेवी बाबू ज्योतिप्रसाद जैन ने अपने साथियों को साथ लेकर इस हिंसामय कार्य को बंद कराने हेतु आन्दोलन चलाया और काफी प्रयत्नों के बाद वे सफल हुए। इस सफलता में उनके सहयोगी स्वामी नारायणआनन्द का भी प्रमुख सहयोग रहा।
ज्योतिप्रसाद जैन ने माँ त्रिपुर बाला सुन्दरी के मेले में लगनेवाली मीट शॉप को सदैव के लिए बन्द कराने में सफलता प्राप्त की। श्री जैन ने वृद्ध विवाह और बाल विवाह का भी खुलकर विरोध किया। सन् 1925 में उन्होंने 'बूढ़े का विवाह ' नामक एक नाटक लिखा- जो अत्यन्त लोकप्रिय हुआ । इस नाटक को उत्साहपूर्वक विभिन्न मंचों पर दिखाया जाता था, जो वृद्ध विवाह पर तीक्ष्ण प्रहार करता था 18 इस प्रकार जैन समाज ने सामाजिक कुरीतियों को दूर हटाने में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
नेताजी
सुभाषचन्द्र बोस
आजाद हिन्द फौज में जैन समाज का योगदान
आजादी की लड़ाई में आजाद हिन्द फौज के सैनिकों ने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया । यद्यपि जापान की पराजय के बाद आजाद हिन्द फौज की योजना असफल हो चुकी थी। परन्तु इस सेना ने उन राष्ट्रवादियों की हताश भावना को ढाढ़स बँधाया, जो निराशा और असहायता से त्रस्त हो चुके थे । आजाद हिन्द फौज में जैन समाज ने भी अपना योगदान दिया। कर्नल डॉ. राजमल जैन 'कासलीवाल' ने फौज में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य
204 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान