Book Title: Bhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Author(s): Amit Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 205
________________ वाली 25 हजार पशुओं की बलि हिंसा को रोकने के लिए अथक परिश्रम किया, परन्तु उसे आधी से कुछ अधिक ही सफलता मिल पायी। पूर्ण सफलता हेतु सभा ने काफी प्रयत्न किया। सभा ने जीवन माता (सीकर) में प्रतिवर्ष नौदुर्गा के दिनों में होने वाले 5 हजार पशुओं के वध (बलि) को रोकने के लिए काफी प्रयत्न किया, जिससे वहाँ अधिकांश रूप से बलि प्रथा रुक गयी, परन्तु फिर भी माता के नाम पर कुछ अन्धभक्तों ने 36 बकरों की बलि दे दी। जीवदया प्रचारिणी सभा के कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह जाकर बलि हिंसा पर रोक लगवायी। मौजा चौरसिया (जिला फर्रुखाबाद) के कछवाह क्षत्रिय महासभा के वार्षिक अधिवेशन पर पहुंचकर सभा के प्रचारकों ने अहिंसा पर प्रभावशाली व्याख्यान दिया। इस भाषण से प्रभावित होकर कछवाह महासभा ने अपनी पूरी जाति में बलि हिंसा पर रोक लगा दी। महासभा ने एक नियम भी पारित किया कि यदि कोई बिरादरी का आदमी किसी भी देवता पर किसी तरह की बलि करेगा, तो उसे जाति से खारिज किया जायेगा तथा 25 रुपया जुर्माना भी लगाया जायेगा। कछवाह क्षत्रिय महासभा के संरक्षक राजा सूर्यमान सिंह (अवागढ़) ने भी इस नियम को सख्ती से लागू करने का आह्वान किया। जीवदया प्रचारिणी सभा के प्रयत्नों से स्टेट ‘एका' जिला, मैनपुरी में प्रतिवर्ष दशहरे और नौ दुर्गा पर होने वाली सैंकड़ों पाढ़ा बकरों की बलि हिंसा को राजाज्ञा से सदा के लिए बन्द कर दिया गया। पहले यहाँ राजा की तरफ से भी बलि दी जाती थी। आगरा के सेठ अचलसिंह भी इन सामाजिक कुरीतियों को दूर करने हेतु प्रयत्न करते रहते थे। जनवरी 1935 में उन्होंने हरिजन बस्ती में घूमते हुए देखा कि कुछ हरिजन एक जिन्दा सुअर को आग में डाल रहे हैं और उसे खाने की तैयारी हो रही है। सेठ जी ने तुरन्त इस निन्दनीय कार्य को रुकवाया और उन लोगों को समझाकर आगे बढ़ गये। कुछ लोगों ने सेठ अचलसिंह को बताया कि हरिजनों में यह आम प्रथा है और काफी समय से चल रही है। इस बात को सुनकर सेठ जी बहुत चिन्तित हुए और उन्होंने इस सम्बन्ध में गाँधी जी को पत्र लिखा। गाँधी जी सेठ अचलसिंह का पत्र पाकर बहुत परेशान हो गये। उन्होंने तुरन्त ही अचलसिंह को पत्र लिखा। अपने पत्र में गाँधी जी ने लिखा-भाई अचलसिंह, तुम्हारा पत्र मिला। सुअर की बात पढ़कर मैं तो व्याकुल चित्त बन गया हूँ। क्या आपने यह दृश्य पहली बार ही देखा? कितने हरिजन थे? यह देखकर आपने कुछ किया? यदि किया, तो उन लोगों ने क्या उत्तर दिया? यदि जिन्दा सुअर को आग में डालते थे, तो क्या वह चीखते नहीं थे? आप इस बारे में सूक्ष्म निरीक्षण करके मुझे लिखें। यदि यह प्रथा हरिजनों में सर्वसाधारण है, तो हमें बड़ा आन्दोलन करना भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अन्य उपक्रमों में जैन समाज का योगदान :: 203

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